Tuesday, February 10, 2009

थार में बलिदान

जिंदगी की कीमत जब मुआवजे में मापी जाती है तो लगता है कि क्या मानव शरीर की कोई कीमत नहीं। मैं नहीं कहता कि मुआवजा नहीं होना चाहिए, लेकिन इससे कहीं ज्यादा उस जिंदगी की कीमत है जिसे हर वक्त चाहते हैं अपने लोग। आज यानी 10 फरवरी 2009 की शाम मेरे लिए बड़ी दुखद थी। मुझे इत्तिला मिली कि हमारा एक जवान टेंक दलदल में फंस जाने से जान दे बैठा। धोरों की जीवनरेखा बनी नहर के पास हुए हादसे में उस जवान की जान गई, जिसकी इसी महीने शादी होने वाली थी। खैर, कहते हैं ना कि यह तो मौत का बहाना था, लेकिन दरअसल मैं सलाम करता हू् उस जवान की कर्तव्य परायणता को जिसने अभ्यास के दौरान दी गई टास्क को छोड़ने की बजाय अपने प्राण छोड़ दिए। यह वाकया है नाचना के पास चल रहे सैन्य अभ्यास का। दलदल में टेंक फंस जाने से मध्यप्रदेश के साथी पुरुषोत्तम ने वाकई अपने नाम को साथर्क कर दिया देश की सेवा में रहते हुए। कोई मशीन खराब या नकारा हो जाए गम कम होता है, लेकिन जब मशीन किसी जिन्दगी को लील ले तो मशीन से ज्यादा जिंदगी अहम हो जाती है। आपको पता है जैसलमेर दुनिया भर में एक टूरिस्ट प्लेस के रूप में विख्यात है। बहुत ही बिरले होंगे जो जानते होंगे, जैसलमेर के धोरों पर लिखे गए शहादत के उस इतिहास को जिसने हमारे मुल्क की भौगोलिक तस्वीर बदलने से रोक दी। दुश्मन के उन इरादों को नाकाम कर दिया जिसमें उसने सपना देखा था रामगढ़ में नाश्ता, जोधपुर में लंच और दिल्ली में डीनर का। नतीजा तो सभी जानते है्, आज भी यह स्वर्ण नगरी इसी शानो-शौकत के साथ जज्बा रखती है वैसे ही बलिदान का। मालिक पुरषोत्तम की आत्मा को शांति प्रदान करे, लेकिन बहुत नाइंसाफी होगी, अगर इस शहादत को भी तोला गया मुआवजे की तराजू में।