Tuesday, November 28, 2017

भारत अंग्रेजों को सिखाएगा आतंक से लड़ने के गुर

ब्रिटिश आर्मी साधन-संसाधनों व तकनीकी के मामले में भले ही एडवांस्ड होगी, लेकिन आतंक से लड़ने का जो तजुर्बा भारतीय फौज को है, वो तजुर्बा ब्रिटने की फौज अफगानिस्तान में अलकायदा के खिलाफ अमरीका के साथ चलाए गए सैन्य अभियान का हिस्सा होने के बावजूद शायद हासिल नहीं कर पाई।

-सुरेश व्यास
भारत-सैशेल्स की सेनाओं की बीच संयुक्त युद्धाभ्यास 
जयपुर। हर थोड़े अंतराल के बाद आतंकी हमले झेल रहा ब्रिटेन आतंक से लड़ने के गुर भारत से सीखेगा। भारत की आतंक प्रभावित कश्मीर घाटी में लगातार आतंकियों को मौत के घाट उतार रही भारतीय सेना की राजपूताना राइफल्स के जवान ब्रिटेन की थल सेना की इकाई के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास में अपनी दक्षता का प्रदर्शन करेंगे। मौका होगा भारत-ब्रिटेन संयुक्त युद्धाभ्यास का। राजस्थान के रेतीले धोरों में मीलों दूर तक फैली महाजन फील्ड फायरिंग रेंज में ये युद्धाभ्यास 1 दिसम्बर से शुरू होगा। आगामी 14 दिसम्बर तक चलने वाले इस युद्धाभ्यास को नाम दिया गया है- अजेय वारियर।
ब्रिटेन पिछले कुछ समय से लगातार आतंकी हमलों का सामना कर रहा है। कभी मेट्रो स्टेशनों तो कभी सब-वे पर, कभी किसी म्जूजिकल नाइट में। आतंकी फायरिंग, तेज वाहन से लोगों को रोंदकर तो कभी विस्फोटकों के जरिए दहशतगर्दी फैला रहे हैं। ऐसे में ब्रिटेन के सामने भी आतंककारियों से जूझना जरूरी हो गया है। ब्रिटिश आर्मी साधन-संसाधनों व तकनीकी के मामले में भले ही एडवांस्ड होगी, लेकिन आतंक से लड़ने का जो तजुर्बा भारतीय फौज को है, वो तजुर्बा ब्रिटने की फौज अफगानिस्तान में अलकायदा के खिलाफ अमरीका के साथ चलाए गए सैन्य अभियान का हिस्सा होने के बावजूद शायद हासिल नहीं कर पाई। ऐसे में भारत-ब्रिटेन के बीच तीसरी बार हो रहे संयुक्त युद्धाभ्यास को काफी अहम माना जा सकता है।
जरूरी है ब्रिटेन के लिए
भारत-ब्रिटेन के द्वीपक्षीय सामरिक सहयोग के तहत पिछले कुछ बरसों से संयुक्त युद्धाभ्यास किए जा रहे हैं। दोनों सेनाओं के बीच पहला युद्धाभ्यास वर्ष 2013 में बेलगाम में हुआ था। इसके बाद संयुक्त युद्धाभ्यास के लिए भारतीय फौज की टुकड़ी वर्ष 2015 में ब्रिटेन गई थी। अब ब्रिटेन की सैन्य टुकड़ी युद्धाभ्यास के लिए जब भारत आ रही है तो ब्रिटेन आतंकी हमलों से कुछ ज्यादा ही जकड़ा हुआ नजर आ रहा है। ऐसे में ब्रिटेन ने इस बार युद्धाभ्यास के लिए ब्रिटिश आर्मी की पहली बटालियन रॉयल एंग्लिकन रेजिमेंट की टुकड़ी को भेजने का फैसला किया है।
काम आएगा सुदीर्घ अनुभव
राजस्थान में भारतीय रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल मनीष ओझा कहते हैं कि भारत की ओर से युद्धाभ्यास में शामिल हो रही थल सेना की 20-राजपूताना राइफल्स को भारत में काउंटर इंसरजेंसी ऑपरेशंस यानी आतंक निरोधी कार्रवाइयों का सुदीर्घ अनुभव है। राजपूताना राइफल्स ने ऑपरेशन पवन व जम्मू-कश्मीर में चल रही आतंकी निरोधक गतिविधियों में अहम भूमिका अदा की है। इस सैन्य इकाई को पर्वतीय, मैदानी व पठारी इलाकों के अलावा वनाच्छादित क्षेत्रों में भी आतंकियों को धूल चटाने में महारत हासिल है। इसी तरह ब्रिटेन की ओर से युद्धाभ्यास में शामिल होने आ रही ब्रिटेन की रॉयल एंग्लिकन रेजिमेंट ने भी अफगानिस्तान और इराक में अलकायदा व अन्य आतंककारी संगठनों ने निपटने का अनुभव हासिल किया है। ब्रिटिश सेना की इस सैन्य इकाई को अन्य इकाइयों को भी आतंकी समूहों से निपटने की ट्रेनिंग देने का जिम्मा दिया गया है। ऐसे में राजस्थान हो रहा संयुक्त युद्धाभ्यास अजेय वारियर काफी अहम साबित होगा।
हर स्थिति से निपटने का तजुर्बा
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि ब्रिटेन व भारत की भौगोलिक परिस्थितयों में भले ही काफी अंतर है, लेकिन भारतीय फौज ने हर तरह की भौगोलिक परिस्थिति में आतंक से निपटने का जो अनुभव हासिल किया है, उसकी दाद विदेशी सेनाएं भी देती है। रूस की सेना के साथ महाजन में ही हुए युद्धाभ्यास इंद्रा में आतंकी ठिकाने को नैस्तनाबूद करने के प्रदर्शन को देखकर रूस के तत्कालीन रक्षा मंत्री व थलसेनाध्यक्ष ने भी दांतों तले अंगुली दबा ली थी। इसके अलावा अमरीका की आर्मी ने भी आतंक से निपटने में भारतीय सेना के अनुभवों से बहुत कुछ सीखा है। लेकिन भारत के साथ इस बार का युद्धाभ्यास आतंक निरोधक अभियानों के मामले में अहम ब्रिटिश सेना के कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण साबित होगा।
निशाने पर है ब्रिटेन
आतंकी हमलों के मामले में ब्रिटेन अन्य यूरोपीय देशों के मुकाबले अधिक निशाने पर। अकेले इसी साल सितम्बर तक ब्रिटेन में चार बड़े आतंकी हमले हो चुके हैं। ताजा हमला गत 15 सितम्बर को पार्सन्स ग्रीन ट्यूब स्टेशन पर हुआ। इस भूमिगत रेलवे स्टेशन पर हुए बम विस्फोट में दो दर्जन से ज्यादा लोग घायल हुए। इससे पहले 19 जून को फिन्सबरी पार्क में नमाज पढ़ रहे लोगों को पर वेन से लोगों को रौंदने का प्रयास किया गया। 3 जून को लंदन ब्रिज पर इसी तरह के आतंकी हमले में 7 लोगों की जान गई और 48 जख्मी हुए। 22 मई को रॉक स्टार एरेना के कंसर्ट से लौट रहे लोगों पर हमले में 22 लोगों की जान गई। 22 मार्च को वैस्टमिन्सटर हमले में भी छह लोग कालकवलित हुए। ग्लोबल टैरेरिस्ज्म इंडैक्स के मुताबिक वर्ष 2000 से 2017 तक अकेले ब्रिटेन में 126 लोग आतंकी घटनाओं का शिकार हो चुके हैं। अब भी आतंकी हमलों के लिहाज से ब्रिटेन पर खतरा ज्यादा है।
नया अनुभव होगा युद्धाभ्यास
रेत के धोरों में पसरी एशिया की सम्भवतः सबसे बड़ी फील्ड फायरिंग रेंज महाजन में दोनों देशों की सेनाएं लगातार 14 दिनों तक आपसी सहयोग व समन्वय बढ़ाने के साथ साथ एक-दूसरे के सामरिक अनुभव भी साझा करेंगी। इस युद्धाभ्यास में दोनों देशों की सैन्य टुकड़ियों के लगभग सवा सौ जवान व अधिकारी अपनी क्षमताओं का दमखम दिखाएंगे। इसके लिए व्यापक तैयारियां की जा रही है। भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारी युद्धाभ्यास अजेय वारियर की तैयारियों को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं।



Saturday, November 25, 2017

पद्मावती के विरोध की नई स्क्रिप्ट

क्यूं जुड़ी पद्मावती से नाहरगढ़ की घटना...कोई साजिश तो नहीं ये सौहार्द्र बिगाड़ने की...क्यों हो रहा है संदेह...पद्मावती विरोध का गुजरात चुनाव से कोई सम्बन्ध?

-सुरेश व्यास
जयपुर। जयपुर के ऐतिहासिक नाहरगढ़ के बुर्ज पर एक युवक का शव लटका हुआ मिलता है। उधर अम्बाला में इस घटना की खबर देखने के बाद एक युवती फांसी के फंदे पर झूलकर जान दे देती है। इन दोनों घटनाओं में हालांकि कोई समानता नहीं है, लेकिन जिस तरह इन घटनाओं को फिल्मकार संजय लीला भंसाली की आने वाली फिल्म पद्मावती के राजस्थान और देश के अन्य हिस्सों में चल रहे विरोध से जोड़ा जा रहा है, उससे लगता है कि सोशल मीडिया के इस दौर में पद्मावती के विरोध की जैसे कोई नई स्क्रिप्ट लिखी जा रही है।
नाहरगढ़ के बुर्ज पर जवाहरात व आर्टिफीशियल ज्वैलरी का काम करने वाले आर्टीजन की मौत इतना सुर्खियों में नहीं आती, यदि इस ऐतिहासक दुर्ग की पहाड़ियों के खुरदुरे पत्थरों पर कोयले से लिखे गए कई संदेश पद्मावती के विरोध से जुड़े होने का संकेत नहीं देते। घटना के करीब 48 घंटे बाद भी न तो ये साफ हो पाया है कि आर्टीजन ने आत्महत्या की है या उसे मारकर लटकाया गया है और न ही यह अब तक स्पष्ट हो सका है कि इस घटना का पद्मावती के प्रदेश में चल रहे विरोध से कोई ताल्लुक है। और तो और, अब तक यह भी साफ नहीं है कि किले के बुर्ज से लटक रही लाश के चारों ओर पहाड़ी के पत्थरों पर पद्मावती के विरोध के नाम पर तनाव फैलाने की कोशिश करने वाली इबारतें लिखी किसने हैं, लेकिन लगातार दो दिन से यह घटना पद्मावती के विरोध के नाम से ही सुर्खियों में बनी हुई हैं।
संदेह तो होगा ही
हालात बताते हैं कि नाहरगढ़ की घटना की पटकथा सुनियोजित ढंग से लिखी गई है। शुरुआती में ही संदेह इसलिए हो गया कि कुछ दिन पहले राजस्थान के चित्तौड़गढ़ दुर्ग में पद्मावती के विरोध के दौरान कुछ लोगों ने भंसाली और फिल्म में पद्मिनी का रोल अदा करने वाली अभिनेत्री दीपिका पादुकोण के पुतलों को फांसी के फंदों पर पेड़ से लटका कर विरोध प्रदर्शन किया था और नाहरगढ़ की पहाड़ियों पर एक इबारत लिखी थी- पद्मावती का विरोध करने वालों हम किले पर पुतले नहीं लटकाते, हम है दम। इस पंक्ति को देखकर हर किसी ने अंदाज लगा लिया कि बुर्ज से लटके हुए शव का सम्बन्ध पद्मावती का विरोध करने वाले लोगों को किसी जवाब से है। इसी तरह एक अन्य पंक्ति चेतन तांत्रिक मारा गया... ने भी घटना को पद्मावती से जोड़ने पर विवश किया, कारण कि इतिहास में चित्तौड़गढ़ के राजा रतनसिंह के एक दरबारी चेतन राघव का उल्लेख मिलता है, जिसे रतनसिंह ने देश निकाला दे दिया था और कहा जाता है कि उसने ही अल्लाउद्दीन खिलजी के सामने रतनसिंह की मुखबिरी के साथ साथ रानी पद्मिनी के सौंदर्य का उल्लेख किया था।
फिर विरोध क्यों
पहाड़ी इलाके में लिखी गई इसी तरह की करीब तीन दर्जन इबारतों ने नाहरगढ़ की घटना को पद्मावती से जोड़ने के संकेत दिए। हालांकि राजस्थान के साथ मध्यप्रदेश, पंजाब, उत्तरप्रदेश समेत कुछ राज्यों में पद्मावती के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है, सेंसर बोर्ड ने फिल्म पास नहीं की है और फिल्म निर्माताओं ने भी एक दिसम्बर को फिल्म की रीलिज टाल दी है, फिर भी विरोध प्रदर्शन नहीं थम रहे। दिल्ली तक में राजपूत समाज के लोगों ने फिल्म के विरोध में तलवारें लहराते हुए प्रदर्शन किया। सुदूर दक्षिण भारत तक विरोध की आंच पहुंच गई। फिर नाहरगढ़ की घटना की नाटकीयता सामने आ गई।
सौहार्द्र बिगाड़ने की कोशिश तो नहीं
ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि पद्मावती के विरोध के पीछे आखिर असल कारण है क्या। क्यों नाहरगढ़ की घटना के दौरान विवादित संदेश लिखकर भावनाएं भड़ाकाने की कोशिश की गई।
पद्मावती का विरोध अपनी जगह है, लेकिन इसके नाम पर जिस तरह की घटना जयपुर में सामने आई है, उसे देखकर अन्दाजा लगाया जा सकता है कि इस विरोध की आड़ में कुछ लोग सौहार्द्र बिगाड़ने का प्रयास भी कर सकते हैं। साम्प्रदायिक दृष्टि से संवेदनशीन माने जाने वाले राजस्थान के भीलवाड़ा में शनिवार को पद्मावती के खिलाफ बंद आहूत किया गया। जिले के मांडल कस्बे में दुकान बंद करने को लेकर बवाल भी हुआ। गनीमत रही कि पुलिस की सख्ती और कुछ संवेदनशील लोगों की सूझबूझ से बात वहीं खत्म हो गई।
गुजरात से क्या कनेक्शन

कुछ लोग हालांकि पद्मवती के विरोध गुजरात चुनाव की राजनीति से जोड़कर भी देख रहे हैं। इनका तर्क है कि गुजरात चुनाव के शुरुआती दौर में नोटबंदी और जीएसटी के मुद्दों के साथ साथ गुजरात में विकास, बेरोजगारी, दलित अत्याचार और भाजपाध्यक्ष अमित शाह के बेटे के कम्पनी के मुद्दे छा रहे थे, लेकिन अब इन सभी पर पद्मावती का विरोध भारी पड़ता दिख रहा है और चुनाव नतीजों तक यह सिलसिला जारी रह सकता है। कुछ लोग विरोध के पीछे भाजपा का राजनीतिक लाभ भी सूंघ रहे हैं। सवाल फिर भी अनुत्तरित है कि पद्मावती के विरोध के नाम पर कहीं राजनीतिक ध्रुवीकरण की नई स्क्रिप्ट तो नहीं लिखी जा रही? फिल्म के विरोध को किसी भी रूप से साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रही है तो ये और भी खतरनाक है।

Wednesday, November 1, 2017

भारतीय बहादुरी को इजरायल का अनूठा सलाम

हाइफा युद्ध पर विशेष डाक टिकट के गहरे हैं मायने
-सुरेश व्यास
पहले विश्व युद्ध के स्वर्ण जयंती वर्ष में इजरायल ने भारतीय फौज की बहादुरी को अनूठे ढंग से सलाम किया है। इजरायल पहले विश्व युद्ध में लड़ी गई हाइफा की लड़ाई पर एक खास डाक टिकट जारी करने वाला है। हाइफा युद्ध ने ही इजरायल की स्थापना के रास्ते खोले थे। इस लड़ाई में हिन्दुस्तान की मारवाड़ रियासत के बहादुरों ने जर्मनी और तुर्की की सेनाओं को हाइफा शहर से खदेड़ बाहर किया था। विशेष डाक टिकट में इसी बहादुर सैनिक टुकड़ी के मुखिया मेजर दलपतसिंह शेखावत की अश्वारोही तस्वीर को प्रमुखता से उकेरा गया है। इतना ही नहीं इस डाक टिकट पर उकेरे गए जोधपुर लांसर्स के ऐतिहासिक प्रतीक चिह्न (लोगो) ने आधुनिक राजस्थान के दूसरे बड़े शहर जोधपुर की ऐतिहासिक पहचान को भी दुनिया के सामने प्रतिष्ठापित किया है।
हालांकि पहले विश्व युद्ध व हाइफा की लड़ाई को एक सौ साल होने को आए हैं, लेकिन इजरायल आज भी भारतीय फौज की टुकड़ी की उस बहादुरी को नहीं भूला है, जिसकी बदौलत दुनिया में पहले यदूदी देश के रूप में इजरायल की नींव पड़ी। संभवतः यही कारण है कि इजरायल हाइफा युद्ध की स्वर्ण जयंती के मौके जोधपुर की फौजी टुकड़ी के सम्मान में यह विशेष डाक टिकट जारी करने का फैसला किया है। इजराइली मुद्रा के 5.55 मूल्य के इस डाक  टिकट पर इजराइली भाषा हिब्रू का अंग्रेजी तर्जुमा भी प्रकाशित किया गया है। इसमें ब्रिटिश आर्मी, द इंडियन बटालियन और 1918 फर्स्ट वर्ल्ड वार 100 ईयर्स के साथ हाइफा हीरो मेजर शेखावत को हाइलाइट किया गया है। यह विशेष डाक टिकट अगले साल सितम्बर में आधिकारिक रूप से जारी किया जा रहा है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
हाइफा की लड़ाई पहले विश्व के दौरान 23 सितम्बर 1918 को हुई थी। हाइफा शहर में जर्मनी और तुर्की की फौजें घुस चुकी थी। विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने हिंदुस्तान की मैसूर, हैदराबाद और जोधपुर रियासतों के सैनिकों को तुर्की भेजा था। जब बात हाइफा से जर्मनी व तुर्की की सेनाओं को खदेड़ने की आई तो संकट खड़ा हो गया। चूंकि हैदराबाद रियासत के सैनिक मुसलमान थे, इसलिए अंग्रेजों ने इन सैनिकों को तुर्की के खलीफा के खिलाफ लड़ने से रोक दिया। साथ ही जोधपुर व मैसूर की सैनिक टुकड़ियों को हाइफा पर चढ़ाई करने का आदेश दिया गया। मेजर शेखावत व कैप्टन अमान सिंह जोधा की अगुवाई वाली जोधपुर रियासत की घुड़सवार लांसर्स बटालियन ने मात्र एक घंटे में हाइफा शहर पर कब्जा कर जर्मनी व तुर्की की सेनाओं को मार भगाया।
तलवारों-भालों से आखिरी लड़ाई
हाइफा की लड़ाई तलवार और भालों से लड़ी गई आधुनिक भारत की सम्भवतः आखिरी लड़ाई थी। हाइफा पर चढ़ाई करने वाली जोधपुर लांसर्स की टुकड़ी के पास हथियारों के नाम पर कुछ बंदूकें, लांस (भाले) और तलवारें ही थी, जबकि जर्मन सेना तोपों और मशीनगनों के साथ लड़ रही थी। राजस्थान के बहादुर सैनिकों का हौंसला ही था कि दुश्मन मैदान छोड़ भागा, लेकिन जोधपुर संभाग के पाली जिले के नाडोल के निकट देवली पाबूजी निवासी मेजर दलपतसिंह इस युद्ध में शहीद हो गए। उन्हें हाइफा हीरो के नाम से आज भी जाना जाता है। मेजर शेखावत को मरणोपरांत मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया गया। इजरायल की ओर से जारी किए जाने वाले डाक टिकट में भी मेजर शेखावत की बहादुरी को सलाम करते हुए उनकी अश्वारोही तस्वीर को प्रमुखता से छापा गया है, जबकि बटालियन को पार्श्व में दिखाया गया है।
संबंधों की नई शुरूआत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गत जून में इजरायल यात्रा के बाद से दोनों देशों के बीच सम्बन्धों में नया मोड़ दिखाई देने लगा है। वैसे तो भारत इजरायल का एक बड़ा हथियार खरीदार देश है, लेकिन बदलती वैश्विक परिस्थितियों में इजरायल के साथ भारत के सम्बन्धों का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इजरायल में हो रहे संयुक्त युद्धाभ्यास ब्ल्यू फ्लैग-17 में पहली बार भारतीय फौज को भी शामिल किया जा रहा है। इस युद्ध में अमरीका, फ्रांस, जर्मनी, इटली, यूनान और पौलेंड भी हिस्सा ले रहे हैं। इजरायल के उवादा एयरबेस पर 2 से 16 नवम्बर तक चलने वाले इस युद्धाभ्यास में भारत पहली बार शामिल हो रहा है। इसके लिए भारतीय वायुसेना का 45 सदस्यीय दल भेजा गया है। इसमें भारतीय वायुसेना के कमांडो गरुड़ भी शामिल हैं।