क्यूं जुड़ी पद्मावती से नाहरगढ़ की घटना...कोई साजिश तो नहीं ये सौहार्द्र बिगाड़ने की...क्यों हो रहा है संदेह...पद्मावती विरोध का गुजरात चुनाव से कोई सम्बन्ध?
-सुरेश व्यास
जयपुर। जयपुर के
ऐतिहासिक नाहरगढ़ के बुर्ज पर एक युवक का शव लटका हुआ मिलता है। उधर अम्बाला में
इस घटना की खबर देखने के बाद एक युवती फांसी के फंदे पर झूलकर जान दे देती है। इन
दोनों घटनाओं में हालांकि कोई समानता नहीं है, लेकिन जिस तरह इन घटनाओं को फिल्मकार
संजय लीला भंसाली की आने वाली फिल्म पद्मावती के राजस्थान और देश के अन्य हिस्सों
में चल रहे विरोध से जोड़ा जा रहा है, उससे लगता है कि सोशल मीडिया के इस दौर में ‘पद्मावती’ के विरोध की
जैसे कोई नई स्क्रिप्ट लिखी जा रही है।
नाहरगढ़ के बुर्ज पर
जवाहरात व आर्टिफीशियल ज्वैलरी का काम करने वाले आर्टीजन की मौत इतना सुर्खियों
में नहीं आती, यदि इस ऐतिहासक दुर्ग की पहाड़ियों के खुरदुरे पत्थरों पर कोयले से लिखे
गए कई संदेश पद्मावती के विरोध से जुड़े होने का संकेत नहीं देते। घटना के करीब 48
घंटे बाद भी न तो ये साफ हो पाया है कि आर्टीजन ने आत्महत्या की है या उसे मारकर
लटकाया गया है और न ही यह अब तक स्पष्ट हो सका है कि इस घटना का पद्मावती के
प्रदेश में चल रहे विरोध से कोई ताल्लुक है। और तो और, अब तक यह भी साफ नहीं है कि
किले के बुर्ज से लटक रही लाश के चारों ओर पहाड़ी के पत्थरों पर पद्मावती के विरोध
के नाम पर तनाव फैलाने की कोशिश करने वाली इबारतें लिखी किसने हैं, लेकिन लगातार
दो दिन से यह घटना पद्मावती के विरोध के नाम से ही सुर्खियों में बनी हुई हैं।
संदेह तो होगा ही
हालात बताते हैं कि
नाहरगढ़ की घटना की पटकथा सुनियोजित ढंग से लिखी गई है। शुरुआती में ही संदेह
इसलिए हो गया कि कुछ दिन पहले राजस्थान के चित्तौड़गढ़ दुर्ग में पद्मावती के
विरोध के दौरान कुछ लोगों ने भंसाली और फिल्म में पद्मिनी का रोल अदा करने वाली
अभिनेत्री दीपिका पादुकोण के पुतलों को फांसी के फंदों पर पेड़ से लटका कर विरोध
प्रदर्शन किया था और नाहरगढ़ की पहाड़ियों पर एक इबारत लिखी थी- ‘पद्मावती का विरोध करने वालों हम किले पर पुतले
नहीं लटकाते, हम है दम।’ इस पंक्ति को देखकर हर किसी ने
अंदाज लगा लिया कि बुर्ज से लटके हुए शव का सम्बन्ध पद्मावती का विरोध करने वाले
लोगों को किसी जवाब से है। इसी तरह एक अन्य पंक्ति ‘चेतन
तांत्रिक मारा गया...’ ने भी घटना को पद्मावती से जोड़ने पर
विवश किया, कारण कि इतिहास में चित्तौड़गढ़ के राजा रतनसिंह के एक दरबारी चेतन
राघव का उल्लेख मिलता है, जिसे रतनसिंह ने देश निकाला दे दिया था और कहा जाता है कि
उसने ही अल्लाउद्दीन खिलजी के सामने रतनसिंह की मुखबिरी के साथ साथ रानी पद्मिनी
के सौंदर्य का उल्लेख किया था।
फिर विरोध क्यों
पहाड़ी इलाके में
लिखी गई इसी तरह की करीब तीन दर्जन इबारतों ने नाहरगढ़ की घटना को पद्मावती से
जोड़ने के संकेत दिए। हालांकि राजस्थान के साथ मध्यप्रदेश, पंजाब, उत्तरप्रदेश
समेत कुछ राज्यों में पद्मावती के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है, सेंसर
बोर्ड ने फिल्म पास नहीं की है और फिल्म निर्माताओं ने भी एक दिसम्बर को फिल्म की
रीलिज टाल दी है, फिर भी विरोध प्रदर्शन नहीं थम रहे। दिल्ली तक में राजपूत समाज
के लोगों ने फिल्म के विरोध में तलवारें लहराते हुए प्रदर्शन किया। सुदूर दक्षिण
भारत तक विरोध की आंच पहुंच गई। फिर नाहरगढ़ की घटना की नाटकीयता सामने आ गई।
सौहार्द्र बिगाड़ने
की कोशिश तो नहीं
ऐसे में सवाल उठना
लाजिमी है कि पद्मावती के विरोध के पीछे आखिर असल कारण है क्या। क्यों नाहरगढ़ की
घटना के दौरान विवादित संदेश लिखकर भावनाएं भड़ाकाने की कोशिश की गई।
पद्मावती का विरोध
अपनी जगह है, लेकिन इसके नाम पर जिस तरह की घटना जयपुर में सामने आई है, उसे देखकर
अन्दाजा लगाया जा सकता है कि इस विरोध की आड़ में कुछ लोग सौहार्द्र बिगाड़ने का
प्रयास भी कर सकते हैं। साम्प्रदायिक दृष्टि से संवेदनशीन माने जाने वाले राजस्थान
के भीलवाड़ा में शनिवार को पद्मावती के खिलाफ बंद आहूत किया गया। जिले के मांडल
कस्बे में दुकान बंद करने को लेकर बवाल भी हुआ। गनीमत रही कि पुलिस की सख्ती और
कुछ संवेदनशील लोगों की सूझबूझ से बात वहीं खत्म हो गई।
गुजरात से क्या
कनेक्शन
कुछ लोग हालांकि
पद्मवती के विरोध गुजरात चुनाव की राजनीति से जोड़कर भी देख रहे हैं। इनका तर्क है
कि गुजरात चुनाव के शुरुआती दौर में नोटबंदी और जीएसटी के मुद्दों के साथ साथ गुजरात
में विकास, बेरोजगारी, दलित अत्याचार और भाजपाध्यक्ष अमित शाह के बेटे के कम्पनी
के मुद्दे छा रहे थे, लेकिन अब इन सभी पर पद्मावती का विरोध भारी पड़ता दिख रहा है
और चुनाव नतीजों तक यह सिलसिला जारी रह सकता है। कुछ लोग विरोध के पीछे भाजपा का
राजनीतिक लाभ भी सूंघ रहे हैं। सवाल फिर भी अनुत्तरित है कि पद्मावती के विरोध के
नाम पर कहीं राजनीतिक ध्रुवीकरण की नई स्क्रिप्ट तो नहीं लिखी जा रही? फिल्म के विरोध को किसी भी रूप से साम्प्रदायिक
रंग देने की कोशिश की जा रही है तो ये और भी खतरनाक है।
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