Thursday, February 1, 2018

खतरा बढ़ा, रक्षा बजट नहीं


-सुरेश व्यास
देश की उत्तरी व पश्चिमी सीमा पर लगातार खतरा बढ़ने के बावजूद रक्षा बजट में अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं होना अचम्भे की बात है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने एक फरवरी को लोकसभा में मोदी सरकार का आखिरी पूर्णकालीक बजट पेश करते हुए रक्षा बजट में 2.95 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। आंकड़े के रूप में यह पिछले बजट अनुमान से करीब 7.81 प्रतिशत ज्यादा बताया गया है, लेकिन सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की नजर से यह सम्भवतः पिछले छह दशक में अब तक का सबसे कम रक्षा बजट है।

कुछ दिन पहले ही रिटायर्ड मेजर जनरल भुवनचंद्र खंडूरी की अध्यक्षता वाली रक्षा मामलों की संसदीय समिति ने रक्षा बजट की नाकाफी पर हैरानी जताई थी। साथ ही सैन्य संस्थानों के संसाधनों की कमी पर ध्यान नहीं दिए जाने को भी प्रमुखता से रेखांकित किया था, लेकिन बजट में जैसे संसदीय समिति की बात को एकतरह से नजर अंदाज ही कर दिया गया। संसदीय समिति ने रक्षा बजट देश की जीडीपी के 3 प्रतिशत के बराबर करने की सिफारिश की थी। जबकि मोदी सरकार में पिछले चार साल से जीडीपी के आधार पर आंकलन में रक्षा बजट लगातार कम होता जा रहा है। इस बार का रक्षा बजट जीडीपी का मात्र 1.57 प्रतिशत है, जिसे 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद का सबसे कम रक्षा बजट बताया जा रहा है।

जरूरत का आधा भी नहीं
साल 2013-14 के बाद से जीडीपी के मुकाबले रक्षा खर्च लगातार कम हो रहा है। 2013-14 में रक्षा बजट जीडीपी का 1.79 प्रतिशत था जो पिछले साल के बजट में घटकर 1.62 फीसदी हो गया। इस साल के बजट में तो रक्षा के लिए जीडीपी के 1.57 प्रतिशत का ही प्रावधान किया गया है, जबकि जरूरत के हिसाब से यह जीडीपी का कम से कम ढाई-तीन प्रतिशत तो होना ही चाहिए।


बड़ी सेना, छोटा बजट
भारत की सेना दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सेना है, लेकिन हमारे यहां रक्षा बजट में जीडीपी का हिस्सा पाकिस्तान से भी कम है। रक्षा पर इजरायल सबसे ज्यादा जीडीपी का 5.2 फीसदी हिस्सा खर्च करता है, जबकि रूस में यह आंकड़ा 4.5 प्रतिशत, अमरीका में 4, चीन में 2.5 और पाकिस्तान रक्षा पर अपनी जीडीपी का 3.5 प्रतिशत हिस्सा खर्च करता है।

पहले से नहीं हैं पूरे संसाधन
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि देश के पश्चिम व उत्तर-पूर्वी मोर्चों पर लगातार बढ़ रहे खतरे के मद्देनजर भी रक्षा बजट में जीडीपी के कम से कम ढाई फीसदी हिस्से की दरकार है, लेकिन सरकार का इस ओर ध्यान नहीं देना अचम्भित करने वाला है। आज देश की तीनों सेनाओं के पास आसन खतरे के मुकाबले संसाधनों की कमी को तो संसदीय मामलों की समिति तक स्वीकार कर चुकी है। हालात पर नजर डालें तो थल सेना के पास असॉल्ट राइफल्स, मशीन गन्स, बुलैट प्रूफ जैकेट, हेलमेट और तोपों तक की कमी है। वायुसेना लड़ाकू विमानों की कमी से जूझ रही है। नतीजन 41.5 स्क्वाड्रन की जगह महज 33-34 स्क्वाड्रन से काम चलाया जा रहा है। नौसेना के पास युद्धपोत व पनडुब्बियों की कमी किसी से छिपी नहीं है। वायुसेना और नौसेना के पास मौजूदा संसाधन बीस से तीस साल पुराने हैं। इन्हें लगातार अपडेट करके काम चलाया जा रहा है। ऐसे में रक्षा बजट में वांछित बढ़ोतरी समय की मांग भी है।


आधुनिकीकरण के लिए नाकाफी
वर्ष 2018-19 के आम बजट में रक्षा के लिए 2,95,511.41 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। रक्षा बजट में सेनाओं के आधुनिकीकरण के लिए पूंजीगत व्यय मद में खर्च किया जाता है, लेकिन इसमें महज 99,947 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। विशेषज्ञों के अनुसार जिस तरह से सैन्य साजो सामान की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है, उस हिसाब से यह राशि नाकाफी है। बजट में हालांकि डिफेंस इंडस्ट्री कोरिडोर और रक्षा उत्पादन नीति बनाने की घोषणा भी की गई है, लेकिन इसका रोडमैप नहीं होने से सवाल उठ रहा है कि इसे लागू कब और कैसे किया जाएगा।

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