Showing posts with label Vasundhra Raje. Show all posts
Showing posts with label Vasundhra Raje. Show all posts

Sunday, March 18, 2018

राजस्थान में वसुंधरा मंत्रिमंडल के फेरबदल पर क्यों भयभीत है भाजपा

मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चाओं के बीच भाजपा आलाकमान को कोई अदृश्य भय सता रहा हैं कि हाल के उपचुनाव में मिली करारी हार के बाद डेमेज कंट्रोल का यह कदम कहीं भारी न पड़ जाए-

-सुरेश व्यास
जयपुर। राजस्थान में वसुंधरा राजे मंत्रिमंडल के विस्तार की चर्चा तो पिछले करीब एक सप्ताह से चल रही है, लेकिन अभी तक कोई फैसला नहीं हो पाया है। न विस्तार पर कोई  निर्णय हुआ है और न ही राज्य के संगठन में किसी फेरबदल को अंतिम रूप मिला है। इसमें देरी के पीछे किसी न किसी अदृश्य भय को कारण माना जा रहा है। सम्भवतः भाजपा आलाकमान इस बात को लेकर पेशोपेश में है कि हाल के उपचुनाव नतीजों में मिली हार के  बाद मंत्रिमंडल में फेरबदल के जरिए डेमेज कंट्रोल का कदम कहीं भारी तो नहीं पड़ जाएगा।

विधानसभा चुनाव से ठीक दस महीने पहले दो संसदीय व एक विधानसभा चुनाव में हार का सदमा झेल रही भाजपा डेमैज कंट्रोल में तो लगी है, लेकिन  बातें अभी सिरे नहीं चढ़ पा रही। उपचुनाव  के नतीजों ने भाजपा को एंटी इन्कमबेंसी का संदेश तो दिया भी है, लेकिन कार्यकर्ताओं की नाराजगी के कारण अंदरूनी हालात भी
ठीक नहीं है। मंत्री  व भाजपा के कुछ नेता ब्यूरोक्रेसी के निरंकुश होने की बात कर रहे हैं तो कार्यकर्ताओं का कहना है कि मंत्री उन्हें भाव ही नहीं दे रहे।  ऐसे में पिछले कुछ दिनों से नौकरशाही के साथ राज्य मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चाएं जोरों पर हैं। लेकिन लगता है कि मंत्रिमंडल फेरबदल को लेकर भी भाजपा नेतृत्व को कोई अदृश्य भय सता रहा है।

जातिगत समीकरणों का प्लस-माइनस
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि प्रदेश में आगामी नवम्बर-दिसम्बर में  विधानसभा चुनाव होने है, इससे पहले मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के मंत्रिमंडल में फेरबदल एक रिस्क फैक्टर भी है। इसलिए ही शायद भाजपा नेतृत्व कोई फैसला नहीं कर पा रहा। प्रस्तावित मंत्रिमंडल फेरबदल में कुछ मंत्रियों-विधायकों का कद बढ़ाकर जातिगत समीकरण साधना एक बड़ा मकसद हो सकता है, लेकिन जिनका कद घटाया जाना है, उनकी संभावित
नाराजगी ने इस चुनावी साल में भाजपा आलाकमान को असमंजस में डाल रखा है। मसलन, दो उप मुख्यमंत्री बनाने की बात हो रही है। ये विशुद्ध रूप से जातिगत आधार पर तय होना है। इसमें बात सामने आ रही है कि एक ब्राह्मण व एक राजपूत नेता को उप मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। कुछ नाम सामने भी आए हैं, लेकिन इनके प्लस-माइनस ने मामला उलझा रखा है।
संघम् शरणं गच्छामि...
मंत्रिमंडल फेरबदल की चर्चाओं के बीच इन दिनों भारती भवन की ओर भी नेताओं-कार्यकर्ताओं की आवाजाही बढ़ी हुई नजर आ रही है। कारण साफ है कि बिना आरएसएस की मदद के भाजपा की चुनावी वैतरणी पार लगनी मुश्किल है। पिछले चार साल के दौरान आरएसएस के मौजूदा सरकार व प्रदेश संगठन से सम्बन्ध किसी से छिपे हुए नहीं है। मैट्रो रेल परियोजना के लिए मंदिरों की शिफ्टिंग के मुद्दे पर तो संघ के आह्वान पर जयपुर बंद तक हुआ है। संघ की ओर से भाजपा प्रदेश संगठन में संगठन महामंत्री पद पर नियुक्ति में देरी ने भी इन संबंधों को जाहिर ही किया था। प्रेक्षकों की राय में राज्य सरकार पर कथित तौर पर संघ की अनदेखी के आरोप भी लगे, लेकिन इस चुनावी साल में भाजपा संघ की नाराजगी या तटस्थ रुख की रिस्क लेने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में भाजपा नेता 'संघम् शरणं गच्छामी' दिखाई दे रहे हैं। मंत्रिमंडल फेरबदल में संघ की राय अहम रहेगी। इससे ही भाजपा कुछ डेमेज कंट्रोल करने की स्थिति में आ सकेगी।
भय का फ्री हैंड फैक्टर
मंत्रिमंडल विस्तार और फेरबदल वैसे तो मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार होता है। अब तक मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपने हिसाब से ही फेरबदल करने में कामयाब रही है। यहां तक कि प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति में भी उनकी मर्जी ही चली है, लेकिन अब सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या इस बार भी वसुंधरा को ऐसा ही फ्री हैंड मिल सकेगा। यदि ऐसा होता है तो भाजपा आलाकमान को वांछित फायदा मिलने में शंका नजर आ रही है और नहीं होता है तब भी दिक्कत कम नहीं होगी। ऐसे में माना जा रहा है कि 'फ्री हैंड' भी फेरबदल में देरी का एक प्रमुख कारण है।