Saturday, October 3, 2015

पोकरण को इसलिए प्यार करते थे कलाम

 विनम्र श्रद्धांजलि के बहाने याद पोकरण और कलाम की

 'रेत के धोरों में पूर्णिमा की रात मुझे अच्छी लगती है। मैं पूरे चांद वाली इस रात कुछ पल अकेले बिताना चाहता हूं...और मैं पोकरण को प्यार करता हूं क्योंकि यह कुछ करने और स्वच्छंदता का एक बेहतर मंच है।' पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने 2005  में जयपुर के करीब छह सौ स्कूली बच्चों के साथ संवाद के दौरान यह बात कही तो इसमें एक गहरा राज छिपा था। यह सभी जानते हैं कि 'जनता का राष्ट्रपति' (पीपुल्स प्रेजीडेंट) कलाम ने भारत को परमाणु ताकत के रूप में प्रतिष्ठापित करने में अहम भूमिका निभाई थी और दोनों की परमाणु परीक्षण पोकरण की धरती पर हुए थे, लेकिन पोकरण के प्रति कलाम का प्यार परमाणु अभियान से लगातार 24 वर्षों तक जुड़े रहने का नतीजा था। विनम्र श्र
देश के प्रमुख परमाणु वैज्ञानिक आर. चिदम्बरम के अलावा कलाम ही एक मात्र वैज्ञानिक थे, जिन्हें भारत के दोनों परमाणु परीक्षणों से जुड़े रहने का अवसर मिला और 1974 के बाद जब 1998 में 'बुद्ध फिर मुस्कराए' तो ये कलाम का ही कमाल था कि 1995 में भारत की परमाणु परीक्षण तैयारियों को पकड़ लेने वाले अमरीकी उपग्रहों तक को भनक नहीं लग सकी। कलाम ने जैसे ही प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को हॉटलाइन पर 'बुद्ध फिर मुस्कराए' का संदेश देकर लाइन काटी और इसकी आधिकारिक घोषणा हुई तो पूरी दुनिया स्तब्ध रह गई।
ऑप शक्ति के अल्फा, ब्रावो, चार्ली....
कलाम ने ही परमाणु -दो की परिकल्पना को साकार किया था। हालांकि 1998 में हुए पांच परमाणु विस्फोटों की तैयारी कई बरसों से चल रही थी, लेकिन मई1998  के पहले 11 दिन जिस तरह से 'ऑपरेशन शक्ति' को अंजाम तक पहुंचाया गया, उसके कोड अल्फा, ब्रावो, चार्ली...आदि कलाम के अलावा किसी को पता नहीं थे। अल्फा भारतीय सेना की टुकड़ी, ब्रावो परमाणु ऊर्जा विभाग, चार्ली डीआरडीओ व डेल्टा भारतीय वायुसेना की टीमों को दिए गए साइन कोड थे।
सेव की पेटियां
ऑपरेशन शक्ति की शुरुआत सेव की पेटियां भारतीय वायुसेना के माल वाहक विमान एएन-32 में रखने के साथ हुई थी। एक मई को तड़के तीन बजे मुम्बई के सांताक्रुज हवाई अड्डे से जैसलमेर तक का हवाई सफर और जैसलमेर से पोकरण तक सेना के ट्रकों में सेव की पेटियों के साथ इस यात्रा की कमान मेजर जनरल नटराज (आर. चिदम्बरम) और 'मामाजी' (अनिल काकोडकर) के पास थी, लेकिन जैसे ही ट्रकों का कारवां सेव की पेटियां लेकर खेतोलाई गांव में बनाए गए 'डीयर पार्क' (परीक्षण नियंत्रण कक्ष) के प्रार्थना हॉल तक पहुंचा, कमान मेजर जनरल पृथ्वी राज (कलाम) के हाथ आ गई। दरअसल, लकड़ी के बक्सों में सेव नहीं, बल्कि भाभा ऑटोमिक रिसर्च सेंटर में बनाए गए परमाणु बम थे, जिन्हें बड़ी गोपनीयता के साथ मुम्बई से पोकरण लाया गया था।
व्हाइट हाउस में विस्फोट
परमाणु परीक्षण के लिए देह झुलसाने वाले गर्मी में महीनों से काम कर रहे कलाम ने सारा काम इस गोपनीयता से अंजाम दिया कि किसी को पता नहीं चल सका कि भारत इतना बड़ा धमाका करने वाला है। उन्होंने अल्फा कम्पनी की मदद से पांच गहरे कुए खुदवाए थे। इनके नाम भी अजीब थे। इनमें से दो सौ मीटर गहरे जिस कुएं में हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया गया, उसे व्हाइट हाउस का नाम दिया गया था, जबकि फिसन बम के कुए को ताजमहल और पहले सबकिलोटन बम वाले कुए को कुम्भकर्ण का नाम दिया गया। बाकी दो कुए एनटी-1 व एनटी-2 दूसरे दिन किए गए परीक्षणों के लिए आरक्षित रखे गए थे।
फौजी बनकर घूमते थे
पूरे अभियान के दौरान कलाम व अन्य वैज्ञानिक न सिर्फ फौजी नाम से रहे, बल्कि उन्होंने पूरे अभियान के दौरान फौज की वर्दी ही पहने रखी। पोकरण के बस स्टैण्ड पर कई बार ये वैज्ञानिक फौज की गाडिय़ों में घूमने आते थे, लेकिन इनकी हस्ती लोगों को भी तभी पता चली, जब दूसरे परमाणु परीक्षण की खबरें सामने आई।

1 comment:

  1. बहुत ही शानदार लेख...ये अंदर की बात आैर उनका बचपन सरीखा लगाव आैर वह जुनून
    याद दिलाता है

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