Monday, October 5, 2015

स्वच्छता अभियान बनाम सफाईगीरी


राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जंयती पर पिछले साल प्रधानमंत्री के आह्वान पर पूरे देश में स्वच्छता अभियान शुरू होने के बाद नेताओं-जनप्रतिनिधियों ही नहीं, अफसरों तक में झाड़ू लेकर फोटो खिंचवाने की हौड़ को हम साल भर बाद भी भूले नहीं है। किस तरह अभियान के नाम पर दिल्ली के कैम्पस में पहले कचरा फैलाने और बाद में इसे साफ करते हुए नेताओं-अफसरों की फोटो खिंचवाने की घटना पूरे देश में सुर्खियां बटोर गई थी। हालांकि नई बात नौ दिन, खींची तानी तेरह दिन वाली कहावत इस अभियान पर भी लागू हुई। कहना का मतलब है कि लाल किले की प्राचीर से पहली बार देशभर में सफाई का अभियान शुरू करने की प्रधानमंत्री की घोषणा और बापू की बर्थडे पर दो अक्टूबर से देश भर में अभियान का आगाज हुआ तो जैसे हौड़ सी मच गई थी सफाई करने की। रेलवे हो या फिर कोई छोटा मोटा सरकारी दफ्तर, सभी जगह झाड़ू लगाने की हौड़ सी दिखाई दी। अब इस बात पर सवाल उठाने का कोई मतलब ही नहीं रह गया था कि अभियान के नाम पर कहां कितनी झाड़ू और इसे लगाने वालों के माथे पर चढ़ी टोपियां खरीदी गई। खैर कुछ दिनों नहीं, महीनों तक अभियान चला। कहीं सैन्य छावनी में सफाई के लिए अधिकारी जवान जुटे हैं तो कहीं रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म को चमकाया जा रहा है। प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ही नहीं, सोशल मीडिया तक सफाई अभियान छाया रहा। सैकड़ों-हजारों टन कचरा साफ करने के दावे हुए। कहीं कचरे के ढेर बरसों बाद साफ होने के दृश्य सामने लाए गए, लेकिन कुछ दिन बाद जोश ठण्डा सा पड़ गया। इस बार फिर गांधी जयंती पर इस जोश ने कुछ जोर लगाया। कुछ शिकवा-शिकायत हुए, कुछ दावे-प्रतिदावे। लेकिन ये तो जैसे नेताओं की रग रग में फैला रोग है कि कोई काम करे न करे, उनके सामने कैमरे के फ्लैश जरूर चमकने चाहिए। हालांकि हाल ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमरीका यात्रा के दौरान फोटो के लिए आगे आने की हौड़ का जिक्र समीचीन तो नहीं है, लेकिन यह इस रोग की ओर इशारा तो करता ही है।
बात चूंकि सफाईगीरी की हो रही है तो राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की एक तस्वीर ने भी इस गांधी जयंती पर  जनता जनार्दन का ध्यान खींच ही लिया। दरअसल, श्रीमती राजे सवाईमाधोपुर के दौरे पर थी। बकौल सरकारी प्रवक्ता बापू को श्रद्धासुमन अर्पित करने के बाद वे साफ-सफाई का निरीक्षण करने निकल पड़ी। विभिन्न इलाके देखने के बाद वे सरकारी अस्पताल पहुंची तो वहां एक स्थान पर गंदगी देखकर पौछा और पानी की बाल्टी मंगवाई और पौंछा लगाना शुरू कर दिया। अच्छी बात है। मुख्यमंत्री को पौंछा लगाते देख लोगों के मन में भी सफाई के प्रति जागरूकता आएगी और अस्पताल के कारिन्दे भी आइन्दा ध्यान रखेंगे। इस भावना के साथ उन्होंने पौंछा लगाया तो इसकी सराहना की जानी चाहिए, लेकिन जो तस्वीर अखबारों में साया हुई है, उसे देखकर उनका प्रयास सफाई अभियान की बजाय गांधी जंयती पर सफाईगीरी ज्यादा लगता है। (तस्वीर देखिए- इसमें बाल्टी और पौंछा एकदम नए हैं। पौंछा पकडऩे की स्टाइल से अन्दाजा लग ही जाएगा।)

स्वच्छता वाकई एक अहम मुद्दा रह्वही है। बापू ने हमेशा स्वच्छता पर जोर दिया और यदि उनको समर्पित करके कोई अभियान शुरू होता है और खुद प्रधानमंत्री इसकी शुरुआत करते हैं तो जाहिर के समाज में एक संदेश जाता है। नेताओं-अफसरों ने भले ही अभियान को खानापूर्ति, औपचारिकता या फोटो खिंचवाने का जरिया बऽा लिया, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आम लोगों में इस एक साल के दौरान सफाई के प्रति जागरुकता आई है। घरों में बच्चों तक इसका असर दिखता है। बच्चे कोई कचरा इधर-ऊधर फेंकने पर बड़ों को भी टोकने से नहीं कतराते। मुझे याद आता है बरसों पुराना एक किस्सा। सेना के अधिकारी मेरे मित्र गोवा गए थे। वहां उनके बच्चे ने टॉफी खरीदने की जिद्द की। उसे टॉॅफी खरीद कर दी गई। बच्चे ने रैपर सड़क पर फेंक दिया। इसी दौरान एक पुलिस कर्मी की उस पर नजर पड़ गई। वह बच्चे का पास आया और डांटने के अंदाज में बच्चे को आदेश दिया- पिक इट अप...। वह पुलिस कर्मी बच्चे का हाथ पकड़ कर डस्टबीन के पास ले गया और कहा, -ड्रॉप दिस हीयर। बच्चा मारे घबराहट के रो रहा था। पुलिस कर्मी ने इसके बाद बच्चे को दुलारा और पास ही स्थित एक कन्फ्

इस घटना को बीस साल से ज्यादा हो गए। बच्चा आज खुद सेना में है, लेकिन उस पुलिस कर्मी की नसीहत को नहीं भूला है।

हालांकि स्वच्छता अभियान और इस उदाहरण का कोई मेल नहीं भी हो, लेकिन यह घटना भी सफाई अभियान बनाम सफाईगीरी के फर्क को बताने के लिए उचित लगा। दरअसल, प्रधानमंत्री की स्वच्छता अपील ने घर घर असर किया, लेकिन नेताओं-अफसरों के फोटो सेशन ने इस अहम अभियान को सफाईगीरी बनाकर रख दिया। बेहतर होता, नेता भी  बिना प्रचार की भूख, इस अभियान में योगदान देते तो और ज्यादा लोग इससे प्रेरित होते। बहरहाल, ये हिन्दुस्तान की तासीर है। नेता प्रचार का मोह छोड़ नहीं सकते और जनता जो करती है, उससे उन्हें सही अर्थों में कोई सरोकार नहीं रहता।

क्शनरी शॉप पर ले जाकर उसे ढेर सारी टॉफियां दिलाई और वापस मां-बाप के पास छह्वोड़ते हुए बच्चे से कहा- यू आर द फ्यूचर ऑफ दिस कंट्री..डॉन्ट थ्रो एनी गार्बेज ऑन रोड। कीप क्लिनिंग द रोड्स इज अवर ड्यूटी।

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