Monday, May 16, 2016

पाकिस्तान के हालात और भारत की सामरिक चिंता

सामरिक मजबूती बनाम राजनीतिक नेतृत्व की इच्छाशक्ति
-सुरेश व्यास
कहते हैं कि  होश खो देने या पागलपन के कारण ही कोई झगड़ा फसाद होता है। घर-समाज और गलियों चौबारों के झगड़े भी आवेश के कारण होते हैं और निपट जाते हैं, लेकिन आज जो हालात पड़ोसी देशों में बन रहे हैं और जिस तरह से इन देशों में कूटनीतिक रास्तों से किसी ताकतवर देश का पिच्छलग्गू बनने या बनाने की की कोशिशें चल रही है, उसे देखते हुए भारत की सामरिक चिंता को कम नहीं आंका जाना चाहिए।

भारत-पाकिस्तान के रिश्तों को खासकर इस नजरिए से देखा जाए और उसकी अमरीका को पटाए रखने के साथ चीन के साथ पिछले करीब एक दशक से चल रही गलबहियां और हाल ही भारत-पाक सीमा के निकट चीन की गतिविधियां वाकई चिंता पैदा करती है। चीन के साथ भारत का सीमा विवाद तो है ही, लेकिन जिस तरह पाकिस्तान ने कश्मीर के बहाने आतंक को पाल-पोस कर भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया है, वह भी भारत के लिए दुश्मन नम्बर वन ही बना हुआ है।

भारत की सरकारें पाकिस्तान के साथ हमेशा सौहाद्र्रपूर्ण सम्बन्धों की कोशिशें करती रही है, लेकिन इसके नतीजे क्या रहे, इसे आतंकी गतिविधियों को झेलने वाले लोगों के साथ देश की बाकी जनता से ज्यादा शायद हमारे हुक्मरान भी नहीं समझ पाए हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की लाहौर यात्रा से दोस्ती के संदेश के बाद जिस तरह कारगिल का युद्ध हुआ। मौजूदा प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी की गोपनीय व देश-दुनिया को चौंकाने वाली लाहौर यात्रा के बाद पठानकोट पर आतंकी हमला हुआ। ऐसे और भी कई उदाहरण मिल जाएंगे। आतंक से निपटने की बात अलग है और सामरिक दृष्टि से पाकिस्तान के प्रति सजग रहने की बात एकदम अलग है।

भारत की मौजूदा चिंता पाकिस्तान से पोषित आतंकवाद से निपटने के अलावा, पाकिस्तान की चीन के साथ बढ़ती नजदीकियां तो हैं ही, लेकिन जिस तरह चीन नेपाल सरीखे भारत के विश्वस्त पड़ोसी को भी झांसे में लेने की कोशिश कर रहा है, उससे लगता है कि अमरीका के बहाने चीन भारत को चौतरफा घेरने की कोशिश में पाकिस्तान के कंधे पर बंदूक रखने की चेष्टा में है। गरीब, कुचला-दबा पाकिस्तान पैसे के लिए अपना जमीर गिरवी रखने के लिए कुख्यात रहा है। अफगानिस्तान से रूसी सेना की विदाई के बाद भले ही तालिबान को सह देने की बात हो या अमरीका पर हुए सबसे बड़े 9/11 आतंकी हमले के दोषी ओसामा बिन लादेन को अपने यहां छिपाए रखने का दृष्टांत हो, पाकिस्तान ने पैसे के लिए कुछ भी करेगा वाली कहावत को चरितार्थ करने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी।

अब चीन के साथ उसकी नजदीकियां और चीन की ओर से भारत से सटी सीमा पर अपनी सामरिका गतिविधियां बढ़ाए जाने का वाशिंगटन से हुए रहस्योद्घाटन भारत के लोगों के लिए चिंता का सबब है।

सवाल है कि क्या चीन और पाकिस्तान मिलकर भारत पर हमला करने की तैयारी में है? संयुक्त राष्ट्र संघ के कायदों से बंधा चीन शायद खुद तो हमलावर नहीं होगा, लेकिन पाकिस्तान को उकसाने की उसकी सम्भावित नीति भी घातक सिद्ध हो सकती है।

इस चिंता से हमारे हुक्मरान कितना वाकिफ है, कह नहीं सकते, लेकिन भारतीय रक्षा सेनाओं में तो इसे लेकर खासी चिंता है और इससे निपटने की इनकी तैयारी भी नजर आती है। हाल ही अप्रेल माह में  भारतीय फौज ने एक बड़ा युद्धाभ्यास किया शत्रुजीत। इसका मकसद वैसे तो भारतीय फौज को भविष्य में होने वाले आणविक, जैविक और रासायनिक युद्ध से निपटने के लिए तैयार करना था, लेकिन असली चिंता थी पाकिस्तान का पागलपन। सवाल था कि पाकिस्तान ने खुदा न खास्ता कोई पागलपन  करके भारत की ओर परमाणु हथियार दाग दिए तो क्या होगा और इससे कैसे निपटा जाएगा?

पाकिस्तान का पागलपन भारतीय फौज को एकाएक नजर नहीं आया। दरअसल पाकिस्तान ने पिछले दिनों साठ किलोमीटर तक मार करने वाली नस्र (हत्फ-९) जैसी कम दूरी की मिसाइयों से परमाणु हमले की क्षमता हासिल की है। इसके अलावा सब किलोटन क्षमता के छोटी दूरी पर मार करने वाले अन्य परमाणु हथियार भी बनाए हैं। इन 'टेक्टिकल न्यूक्लियर वैपन (टीएनडब्ल्यू) को हाल ही अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी खतरनाक बताया था। पाकिस्तान वैसे तो दुनिया के सामने कहता रहा है कि वह परमाणु हमले की पहल नहीं करेगा, लेकिन जिस तरह पाकिस्तान में आतंकी संगठन मजबूत होते जा रहे हैं, उससे एक खतरा पाकिस्तानी परमाणु हथियार आतंकियों के हाथ में पडऩे का भी है। यह भी भारत की चिंता का सबब है। साथ ही हाल ही पाकिस्तान के हमलावर (ऑफेंसिव) युद्ध सिद्धांत और उसके लगातार टीएनडब्ल्यू की ओर केंद्रीत होने का खुलासा भी हुआ है। इसका मतलब यह है कि पाकिस्तान अब भारत की ओर से हमला किए जाने का इंतजार नहीं करेगा। उसकी कोशिश होगी कि मौका पड़ते ही छोटा-मोटा हमला कर भारत के भूभाग पर कब्जा किया जाए, ताकि युद्धोपरांत इसे निगोशिएशन के तौर पर इस्तेमाल किया जा सके।


पाकिस्तान की हालत क्या है, यह किसी से छिपी हुई नहीं है। खुद वह आतंकी गतिविधियों का सामना कर रहा है। आए दिन वहां भी आतंकी निर्दोष लोगों का खून बहा रहे हैं। पाकिस्तान की आतंरिक स्थिति भी ठीक नहीं कही जा सकती। सिंध, पंजाब और बलूचिस्तान जैसे इलाकों में  कानून व्यवस्था नाम की चीज दिखाई नहीं देती। सिंध और पंजाब की प्रतिस्पर्धा और बलूचिस्तान में पख्तूनों की जंग, पाकिस्तान के आंतरिक रूप से अस्थिर होने का संकेत दे रही है। कहने को तो वहां निर्वाचित सरकार है, लेकिन दबदबा आज भी फौज का है। ऐसे में पाकिस्तान के आतंरिक हालात, विकट आर्थिक स्थिति, फौज का कट्टरपन और कूटनीतिक मोर्चे पर  'मुंह में राम बगल में छुरी वाली उसकी स्थिति भारत के लिए वाकई खतरा है।

पाकिस्तान की मौजूदा स्थिति और नवगठित सामरिक नीतियों को समझने की कोशिश करते हुए भारतीय थल सेना ने युद्धाभ्यास 'शत्रुजीत में सेना की नवोदित आर्मर्ड, आर्टीलरी व इंफे्रंट्री इकाइयों ने न्यूक्लियर, बायोलोजिकल व केमिकल (एनबीसी) युद्ध के काल्पनिक माहौल में खुद को तैयार करने के लिए पसीना बहाया है। इस दौरान कम दूरी की मिसाइलों का भी प्राथमिकता से इस्तेमाल किया गया। सेनाओं के सामंजस्य को परखने और परमाणु युद्ध की स्थिति में सेना की ओर से बचाव व जवाब तथा थर्ड डाइमेंशन (हवाई मार्ग) से फौजी टुकडिय़ों को युद्ध के मैदान में उतारने की तैयारी को भी परखा गया। मथुरा स्थित सेना की पहली स्ट्राइक कोर की अगुवाई में 'ऑपरेशन शत्रुजीत नामक युद्धाभ्यास में कोर के ४० से ५० हजार जवान न्यूक्लियर, बायोलोजिकल व केमिकल (एनबीसी) हमले के काल्पनिक माहौल में परमाणु हथियारों का मुकाबला करने और दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए करीब डेढ़ माह तक पसीना बहाकर लौटे हैं।

जाहिर है, एक तरफ चीन का पाकिस्तान के नजदीक जाना, उसे आर्थिक व सामरिक मदद प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रदान करना और दूसरी ओर पाकिस्तान का वार डॉकट्रेन बदलने के साथ टीएनटी पर जोर देना, भारतीय फौज के लिए चुनौती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि पाकिस्तान को किसी भी ऐसी हरकत पर मुंहतोड़ जवाब देने में भारतीय सेना सक्षम है, लेकिन देश के राजनीतिक नेतृत्व को भी इन खतरों को भांप कर खुद को तैयार रखना होगा। राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में भारतीय फौज की तैयारी का हश्र क्या होता है, यह देश वर्ष 2001 में भारतीय संसद पर आतंकी हमले के बाद 11 महीने तक चले ऑपरेशन पराक्रम में देख चुका है।

इस हकीकत को नकारा नहीं जा सकता कि पाकिस्तान के पास खोने के लिए कुछ नहीं है, ऐसे में वह कोई भी पागलपन कर भी सकता है। सवाल है कि क्या हम उसके पागलपन का समय पर और सख्त जवाब दे पाएंगे या सेना का 'ऑपरेशन शत्रुजीत जैसा प्रयास कमजोर राजनीतिक इच्छा शक्ति के आगे बौना साबित हो जाएगा?

3 comments:

  1. सुरेश भाई जोरदार,
    तुमसे प्रेरणा लेकर ब्लोग बनाया है...
    तुम्हारे आलेख में ये निचोड़ की बात है,
    पाकिस्तान के पास खोने के लिए कुछ नहीं है, ऐसे में वह कोई भी पागलपन कर भी सकता है।

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  2. Thank MMM. Your words will inspire me for further writing. regards

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  3. यूं तो हर मोर्च पर आप फतेहबाज हैं लेकिन सामरिक मोर्चे पर आपका कोर्इ सानी नहीं है
    कूटनीति से लेकर रणनीति के मसले पर चल रही अंदर खाते की बात बेहतरीन तरीके से आपने उकेरी फिर चाहे अमेरिकी चाल की बात हो या फिर चार्इनीज हाथ की बात.सबसे अंत में की पकिस्तान पास खाने को कुछ नहीं तो वह कुछ भी कर सकता है तो एेसे पागलपन का उपाय भी करना प्रमुख होगा. समय रहते अगर सध गए तो बात बन जाएगी वरना जिस तरह का आचरण गृहमंत्री का चल रहा है बडा कठिन होने जा रहा है
    बेवकूफी में नेपाल गवां गए आैर अब बंगालादेश के सहारे म्यांमार का रास्ता देख रहे हैं लेकिन जब जिगरी दोस्त दुश्मन बन जाए तो हानि अधिक होती है.हमारे हुक्मरानों काे भी यह सोचना होगा

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