-सुरेश व्यास
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर जारी सूचकांक ने भारत में पत्रकारिता के समक्ष नए खतरों की ओर इशारा किया है...असहमति की जगह ले रहे हेट कैम्पेन ने अभिव्यक्ति की आजादी के सामने एक नई चुनौती खड़ी की है....
वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स की रैंकिंग में भारत इस बार भी दो पायदान पिछड़ा है...दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में मीडिया की आजादी की रैंकिंग लगातार गिरी है और इस बार भारत की रैंकिंग लुढ़क कर 140वें पायदान तक पहुंच गई है...यानी देश के पत्रकारों के लिए स्थितियां ठीक नहीं है...असहमति अब हेट कैम्पेन सरीखी असहिष्णुता के रूप में तब्दील होती दिख रही है...एक तबका ऐसा भी खड़ा हुआ है जो आलोचना को पचाना तो दूर सहन तक नहीं कर पा रहा...सत्ता के मद में अभिव्यक्ति को दबाने की कोशिश भी सामने आई है...फिर भी देश में राजस्थान पत्रिका जैसे मीडिया समूह आज भी निष्पक्षता के दम पर ऐसे किसी कुत्सित प्रयास का मुकाबला करने के लिए अडिग दिखाई देते हैं...
फिर भी चौथा स्तम्भ
विश्व पत्रकारिता दिवस 3 मई को दुनिया भर में मनाया जाता है...संयुक्त राष्ट्र महासभा में साल 1991 में पारित प्रस्ताव के बाद हर साल 3 मई को मनाया जाने वाला यह दिन भारत के लिए भी खास है...खास इस मायने में भी है कि देश के संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी वाले प्रावधानों के संदर्भ में प्रेस भले ही कहीं नहीं दिखता, लेकिन हमारे यहां मीडिया को विधायिका, न्यायपालिका व कार्यपालिका के बाद संविधान के चौथे स्तम्भ के रूप में देखा जाता रहा है...फिर भी देश में मीडिया इंडस्ट्री के विकास के साथ साथ देश के पत्रकारों के सामने खतरे भी बढ़ते जा रहे हैं...हर साल आने वाले वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स की रैंकिंग में भारत लगातार पिछड़ता जा रहा है...इसका आशय यह कत्तई नहीं है कि हमारे यहां मीडिया की ताकत कम हुई है...राजस्थान, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र जैसे प्रदेशों में भ्रष्टों को कानून के जरिए दुष्कर्म पीड़िता जैसी इम्युनिटी प्रदान करने वाली प्रचंड बहुमत की सरकारों को झुकना भी पड़ा है...
खतरनाक है मर्जी के खिलाफ बोलना
वैश्विक स्तर पर पत्रकारों की सुरक्षा और संरक्षा को लेकर काम करने वाले संगठन रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने हाल ही वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स-2019 जारी किया है...इसमें नार्वे जैसा छोटा देश प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में अव्वल बना हुआ है तो भारत जैसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की रैंकिंग लगातार गिरती जा रही है.. इस बार 180 देशों के वैश्विक रैंकिंग इंडेक्स में भारत को 140 वें स्थान पर रखा गया है...जबकि पिछले बार रैंकिंग में हम 138वें पायदान पर थे...यह इस बात का संकेत है कि देश में पत्रकारों के लिए स्थितियां ठीक नहीं है... रिपोर्ट इशारा कर रही है कि एक बड़े तबके की मर्जी के खिलाफ बोलना यहां के पत्रकारों के लिए खतरनाक हो सकता है...पत्रकार संगठित रूप से हेट कैंपेन का शिकार हो रहे हैं...पत्रकारों के खिलाफ हिंसा में आतंकी व नक्सली हमले ही नहीं, पुलिस के साथ भ्रष्ट राजनेताओं व माफिया की ओर से होने वाले हमले भी शामिल हैं...
छोटे देश भी ज्यादा सुरक्षित
देश में पिछले साल काम के दौरान हिंसा की घटनाओं में 6 पत्रकार मारे गए...इनमें गैर अंग्रेजी मीडिया संगठनों में काम करने वाले पत्रकार ज्यादा हैं...दुनिया भर में पत्रकारों पर हमले का रिकार्ड रखने वाले पेरिस स्थित एनजीओ रिपोर्टर्स सैन फ्रंटियर्स की रिपोर्ट के अनुसार भारत के मुकाबले नार्वे, फिनलैंड, नीदरलैंड, इथोपिया व जांबिया जैसे देशों में भी पत्रकार ज्यादा सुरक्षित हैं...
दस सालों से बढ़ रहा खतरा
विश्व प्रेस सूचकांक में भारत की रैंकिंग लगातार गिर रही है... साल 2010 में भारत रैंकिंग में 122वें स्थान पर था...इसके बाद 2014 तक 140वें स्थान पर रहा... आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि किस साल भारत की क्या थी प्रेस की स्वंत्रता के मामले में रैंकिंग और कैसे आती रही इसमें गिरावट...
रैंकिंग भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की
वर्ष---रैंकिंग
2019---140
2018---138
2017---136
2016---133
2015---136
2014--- 140
खत्म हो रही सहनशक्ति
आंकड़े बता रहे हैं कि भारत में पत्रकारों के लिए चुनौतियां बढ़ती जा रही है...खासतौर पर उन पत्रकारों के लिए जो सत्ता का सच उजागर करने का जज्बा दिखाते हैं...सच्चाई सहन न कर पाने की प्रवृत्ति का असर पत्रकारिता को चुनौती के रूप में सामने आया है...लेकिन भारत में मीडिया निष्पक्षता के दम पर अब भी हेट कैम्पेन का निडरता से सामना कर रहा है..उस दौर में जब सरकारें मीडिया घरानों पर प्रभुत्व बढ़ाने की कोशिशों में लगी है...ऐसे में क्या उम्मीद करें कि प्रेस की आजादी की रैंकिंग में सुधार के कोई सरकारी प्रयास सामने आएंगे...करेंगे अगले साल के आंकड़ों का इंतजार हिम्मत और जज्बा दिखाते हुए...जय-जय...