Wednesday, December 27, 2017

गुजरात के बाद गलफांस बने राजस्थान के उप चुनाव

भाजपा मानकर चल रही थी कि गुजरात में उसे अपार बहुमत मिल जाएगा और वह उसका फायदा राजस्थान के उपचुनाव में भी लेगी। लेकिन अब उलटा हो चुका है।


-सुरेश व्यास
जयपुर. गुजरात चुनावों के नतीजों के बाद राजस्थान में होने वाले दो संसदीय व एक विधानसभा क्षेत्र के उप चुनाव सत्ताधारी भाजपा के लिए गलफांस बन गए हैं। भाजपा को सरकार के प्रति असंतोष ही नहीं,बल्कि जातिगत समीकरणों ने भी उलझन में डाल रखा है। कांग्रेस प्रत्याशी चयन के मामले में भाजपा को मानसिक दबाव में पहले ही ला चुकी है। वहीं खुद, भाजपा को स्थानीय स्तर पर नेताओं की खींचतान ने परेशान कर रखा है।
राजस्थान में अलवर व अजमेर संसदीय क्षेत्रों में सांसद महंत चांदनाथ और सांवरलाल जाट तथा भीलवाड़ा जिले की मांडलगढ़ विधानसभा सीट पर भाजपा विधायक कीर्तिकुमारी के निधन के कारण उपचुनाव होने हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने इन उपचुनावों की तारीख अभी घोषित नहीं की है, लेकिन आयोग के सामने फरवरी तक इन तीनों सीटों पर चुनाव करवाने की संवैधानिक मजबूरी है। ऐसे में माना जा रहा है कि आयोग कभी भी इन तीनों क्षेत्रों में उप चुनाव की घोषणा कर सकता है।
चुनाव आयोग हालांकि अन्य राज्यों में हुए उपचुनावों के साथ ही राजस्थान के तीनों क्षेत्रों की तारीख भी घोषित कर सकता था,  लेकिन राजनीतिक पंडितों का कहना है कि इसमें भी गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखों में देरी की तरह ही कुछ हुआ है। भाजपा मानकर चल रही थी कि गुजरात में उसे अपार बहुमत मिल जाएगा और वह उसका फायदा राजस्थान के उपचुनाव में भी लेगी। लेकिन अब उलटा हो चुका है।

अलवर का अड़ंगा
बदले हुए सियासी समीकरणों में भाजपा के लिए तारीखों की घोषणा से पहले प्रत्याशी चयन भी एक बड़ी मुसीबत है। अलवर में कांग्रेस पहले ही भाजपा के नहले पर दहला मार गई। कांग्रेस ने डॉ. कर्णसिंह यादव को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया। उन्हें पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेसाध्यक्ष राहुल गांधी के नजदीकी जाने वाले पूर्व राजपरिवार के सदस्य भंवर जितेंद्र सिंह का समर्थन भी है। जबकि भाजपा किसी यादव प्रत्याशी की खोज में ही रह गई। भाजपा हालांकि श्रम मंत्री जसवंत यादव को सामने उतार सकती है, लेकिन उसके सामने वोटों के बंटवारे के खतरे के साथ साथ सांसद रहे स्व. चांदनाथ के समर्थकों की नाराजगी का भय भी है। भाजपा अलवर जिले में पहले से अल्पसंख्यकों के निशाने पर है। ऐसे में यादव व अल्पसंख्यक मतों की नाराजगी ने उसे उलझा रखा है। रही सही कसर, उसके बड़बोले विधायक ज्ञानदेव आहूजा के नित नए सामने आ रहे विवादित बयान पूरी कर रहे हैं।
अजमेर में अजीब दिक्कत
इसी तरह अजमेर संसदीय क्षेत्र में भाजपा असमंजस में है। उसे दिक्कत है कि पूर्व सांसद स्व. सांवरलाल जाट के परिवार को टिकट दें तो परेशानी और न दें तो परेशानी। भाजपा जाट मतों के सहारे इस सीट को जीतना चाहती है, लेकिन स्व. सांवरलाल जाट के परिवार को टिकट देने से भी उसके सामने जाट वोट बंटने का खतरा है और न देने पर भी यह खतरा खत्म नहीं होता। कांग्रेस ब्राह्मण के साथ जाट प्रत्याशी पर भी दाव खेलने की फिराक में है, लेकिन वह पहले भाजपा का इंतजार कर रही है। कांग्रेस इस भरोसे भी है कि किसान महापंचायत ने अजमेर में अपना निर्दलीय प्रत्याशी उतारने की घोषणा कर दी है तो उसे इसका फायदा भाजपा के वोटों में बंटवारे से होगा। ऐसे में वह तो निश्चिंत है, लेकिन भाजपा के माथे से चिंता की सलवटें दूर होने का नाम नहीं ले रही।
मांडलगढ़ की मझधार
रहा सवाल भीलवाड़ा की मांडलगढ़ विधानसभा सीट का तो यहां भी भाजपा ही ज्यादा परेशानी में है। भाजपा को इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखने की चिंता है। कांग्रेस के पास तो यहां खोने के लिए कुछ है नहीं, लेकिन क्षेत्र के जातिगत समीकरणों ने कांग्रेस नेताओं की बांछें खिला रखी है। इस क्षेत्र से राजपूत मतदाता हालांकि काफी प्रभाव रखते हैं, लेकिन ब्राह्मण मतदाता भी निर्णायक भूमिका में रहते हैं। गैंगस्टर आनंदपाल एनकाउंटर मामले के बाद से राजपूत समाज में भाजपा के प्रति नाराजगी ने भाजपा को पहली ही चिंता में डाल रखा है। ऐसे में कांग्रेस की कोशिश इस नाराजगी को भुनाने के साथ ब्राह्मण पर दाव खेलने की है। क्षेत्र में गुर्जर मतदाता भी बड़ी संख्या में है। वे आरक्षण के मुद्दे पर अनमने हैं। इसका खामियाजा भी भाजपा को भुगतना पड़ सकता है। कांग्रेस ने इसके लिए पहले ही अपने विधायक धीरज गुर्जर को धंधे लगा रखा है। ब्राह्मण मतदाताओं के लिए कांग्रेस ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव डॉ. सीपी जोशी को मोर्चा सम्भलाया है।


चिंता विधानसभा चुनाव की

राजस्थान के तीनों उप चुनाव न सिर्फ संसद, बल्कि विधानसभा के लिए भी अहम है। अभी राजस्थान की सभी 25 सीटों पर भाजपा का कब्जा है। भाजपा इसे बरकरार रखना चाहती है। इसका असर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों पर भी पड़ेगा। प्रदेश की भाजपा सरकार के लिए यह चुनावी साल है। दिसम्बर 2018 में यहां विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन भाजपा अभी से राज्य सरकार के प्रति पनप रहे  असंतोष से चिंता में डूबी है। फिर जातिगत समीकरण भी उसके पक्ष में नजर नहीं आ रहे। बावजूद इसके भाजपा उपचुनावों के जरिए अपना अपर हैंड रखने की फिराक में है, ताकि विधानसभा चुनावों के दौरान मानसिक तनाव से मुक्त रहे। भाजपा की परेशानी है कि मोदी मैजिक उतर रहा है। प्रदेश में हुए स्थानीय निकाय व पंचायत चुनावों में कांग्रेस का मत प्रतिशत बढ़ा है। हाल ही निकाय  व पंचायतों के उपचुनाव में भी कांग्रेस ने भाजपा की जमीन खिसकाई है।

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