Friday, October 6, 2017

सवाल 'मुर्गे की गर्दन' का है बाबा


गभग सवा महीने की शांति के बाद डोकलाम एक बार फिर चर्चा में आ रहा है। पहले तो वायुसेना दिवल की वार्षिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारतीय वायुसेना के मुखिया एयरचीफ मार्शल बीएस धनोआ का वह बयान, जिसमें उन्होंने डोकलाम के निकट चंबी वैली में चीनी सैनिकों की मौजूदगी पर सवाल उठाया था और दूसरा, चीन का डोकलाम में मौजूदा सड़क को चौड़ा करने का काम शुरू करना। इन दोनों पहलुओं से डोकलाम विवाद को फिर हवा मिलने की आशंका खड़ी हो रही है।
 
चीन ने हालांकि सड़क का काम जहां शुरू किया है, वह जगह उस विवादित स्थल से लगभग 12 किलोमीटर दूर है, जहां भारत और चीन की सेनाएं गत 16 जून को पहली बार आमने-सामने हुई थी और इसके बाद दोनों देशों के बीच लगभग 73 दिन तक विवाद बना रहा था। फिर भी जानकार मानते हैं कि चीन की यह ताजा कोशिश एक बार फिर डोकलाम इलाके में दोनों देशों की सेनाओं की मौजूदगी बढ़ने का संकेत दे रही है। हालांकि डोकलाम विवाद के शांतिपूर्ण समाधान के दौरान दोनों देशों की सेनाएं विवादित क्षेत्र से हटने पर सहमत हो चुकी हैं।

दरअसल, डोकलाम में मौजूदगी भारत और चीन के लिए सामरिक लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। चीन की कोशिश है कि भूटान के उस भूभाग, जिसे वह अपने डोंगलांग प्रांत का हिस्सा मानना है, उसे सड़क से पूरी तरह कनेक्ट कर दिया जाए, ताकि उसे भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में सीधा एक्सेस मिल सके। यह इलाका भारत के लिए भी सामरिक नजरिए से उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि चीन के लिए। डोकलाम भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर से जुड़ा है, जो देश के सातों उत्तर-पूर्वी राज्यों को जोड़ता है। इस इलाके की नक्शे पर मौजूद भौगोलिक स्थिति इसे चिकन नैक यानी मुर्गे की गर्दन का नाम देती है। भारत की चिंता यह है कि डोकलाम भले ही उसकी बजाय भूटान का भूभाग है, लेकिन इस रास्ते चीन पहुंच गया तो यह भारत के लिए मुर्दे की गर्दन मरोड़ने जैसा ही होगा। कारण कि डोकलाम में सड़क बन जाने का सीधा सा मतलब है चीन को भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों तक सीधा रास्ता सुलभ हो जाना।

भारत, चीन और भूटान के बीच ट्राइ जंक्शन कहलाने वाले डोकलाम में चीन को रोकने के लिए भारत के पास भूटान के साथ किया गया वर्ष 2007 का वह समझौता है, जिसमें भारत भूटान को उसके हितों की रक्षा का वादा करता है। चूंकि भूटान और चीन के बीच राजनयिक सम्बन्ध नहीं है, ऐसे में डोकलाम के मामले में भारत और चीन ही आमने सामने होते रहे हैं।


भारत-चीन सम्बन्धों की जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि चीन के लिए आगामी नवम्बर में प्रस्तावित चीनी कांग्रेस का सम्मेलन वहां की राजनीति के लिहाज से अहम है। ऐसे में चीन ब्रिक्स सम्मेलन से दूर रहने की भारत की चेतावनी के बाद भले ही अगस्त के आखिरी सप्ताह में डोकलाम से हटने पर राजी हो गया हो, लेकिन चीन की कोशिश रहेगी कि वह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस तक इस मुद्दे को जिंदा रखे। ऐसे में आने वाले दिनों में सॉफ्ट टार्गेट बना डोकलाम का मुद्दा थोड़े थोड़े अंतराल पर छाया रह सकता है।

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