Friday, October 6, 2017

भारत-चीन सीमा पर अभी बहुत कुछ करने की जरूरत


भारत और चीन के बीच जून से अगस्त तक डोकलाम विवाद को लेकर चली तनातनी के बीच दोनों देशों के बीच चली शाब्दिक तल्खी में चीन ने भारत को नतीजे भुगतने की जब धमकी दी तो भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने यह बयान दिया था कि भारत अब 1962 वाला भारत नहीं है। उन्होंने साफ संकेत दिया था कि भारत-चीन के बीच 1962 में हुए युद्ध के बाद स्थतियां काफी बदल चुकी है और भारत आज की तारीख में सामरिक दृष्टिमाना कि हम पहले से मजबूत हैं
भारत और चीन के बीच जून से अगस्त तक डोकलाम विवाद को लेकर चली तनातनी के बीच दोनों देशों के बीच चली शाब्दिक तल्खी में चीन ने भारत को नतीजे भुगतने की जब धमकी दी तो भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने यह बयान दिया था कि भारत अब 1962 वाला भारत नहीं है। उन्होंने साफ संकेत दिया था कि भारत-चीन के बीच 1962 में हुए युद्ध के बाद स्थतियां काफी बदल चुकी है और भारत आज की तारीख में सामरिक दृष्टि से उतना कमजोर नहीं है, जितना चीन उसे समझ रहा है।

कई मायनों में देखा जाए तो जेटली का यह बयान सही भी है। आज भारत ने आर्थिक और औद्योगिक विकास के साथ सामरिक दृष्टि से भी तकनीकी रूप से काफी तरक्की की है और वह धीरे धीरे दुनिया की मजबूत सामरिक ताकतों में शुमार किया जाने लगा है। फिर भी सवाल उठ रहा है कि चीन के परिप्रेक्ष्य में क्या हम उतना मजबूत हैं, जितना हमें होना चाहिए? यह सवाल हमेशा से रक्षा विशेषज्ञों के बीच में चर्चा का विषय भी रहा है।  

आज के हालात में भारत और चीन के बीच सीमा विवाद की नजर से देखें तो अकसाई चीन और अरुणाचल प्रदेश को लेकर दोनों देशों के बीच लम्बे अरसे से विवाद चला आ रहा है। दोनों देशों से सटी अन्तरराष्ट्रीय सीमा की भौगोलिक स्थितयां इस विवाद में अहम कड़ी हैं। जिन भौगोलिक परिस्थितयों में भारत को चीन से मुकाबले के लिए खुद को तैयार करना था, उस दिशा में क्या तेजी से काम हुआ है,यह लाख टके का सवाल है। हालांकि भारत ने चीन की सीमा तक अपने संसाधन बढ़ाए हैं। अरुणाचल प्रदेश से असम तक और लेह लद्दाख से सटी सीमा तक काफी कुछ आधारभूत संरचनाएं विकसित की गई है, लेकिन इनकी धीमी गति हमेशा से चिंता का विषय बनी हुई है। मसलन भारत-चीन सीमा से सटे इलाकों में भारत को वर्ष 2012 तक 73 सड़कों का विकास करना था, लेकिन आंकड़ा 21 तक ही पहुंच पाया और अब इस काम को करने की समय सीमा भी वर्ष 2019-20 तक बढ़ाई जा चुकी है। इसी तरह पहाड़ी व दुर्गम इलाकों में ऑपरेशनल तैयारियों को बेहतर ढंग से अमलीजामा पहनाने के लिए गठित की गई भारतीय थल सेना की माउंटेन स्ट्राइक कोर की गति भी उतनी तेज नहीं है, जितना तेज उसे होना चाहिए था। कोर आज भी समग्र संसाधनों से लैस नहीं हो पाई है। लेकिन इसका आशय यह नहीं है कि भारत चीन के मुकाबले खुद को कमजोर पाता है। अरुणाचल प्रदेश और असम के अग्रिम इलाकों में हवाई पट्टियों का विकास और आज की तारीख में वायुसेना की रीढ़ की हड्डी माने जाने वाले सुखोई-30 विमानों की स्क्वाड्रनों की भारत-चीन सीमा पर मौजूदगी भारत की सामरिक तैयारियों में मजबूती को आश्वस्त करती है। इसके अलावा इसी साल शुरू हुए ढोला-सदिया ब्रिज, जिले असम के प्रमुख लोक गायक भूपेन हजारिका के नाम पर समर्पित किया गया है, ने भी पूर्वोत्तर राज्यों में सीमा तक सेना की पहुंच को सुगम बनाने का काम किया है। ऐसे में जानकार कहते हैं कि भारत ने धीरे धीरे ही सही, चीन को साधने की सामरिक तैयारी को योजनाबद्ध रूप से पूरा करने का प्रयास किया है, लेकिन अभी इस दिशा में बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। से उतना कमजोर नहीं है, जितना चीन उसे समझ रहा है। 

कई मायनों में देखा जाए तो जेटली का यह बयान सही भी है। आज भारत ने आर्थिक और औद्योगिक विकास के साथ सामरिक दृष्टि से भी तकनीकी रूप से काफी तरक्की की है और वह धीरे धीरे दुनिया की मजबूत सामरिक ताकतों में शुमार किया जाने लगा है। फिर भी सवाल उठ रहा है कि चीन के परिप्रेक्ष्य में क्या हम उतना मजबूत हैं, जितना हमें होना चाहिए? यह सवाल हमेशा से रक्षा विशेषज्ञों के बीच में चर्चा का विषय भी रहा है।

आज के हालात में भारत और चीन के बीच सीमा विवाद की नजर से देखें तो अकसाई चीन और अरुणाचल प्रदेश को लेकर दोनों देशों के बीच लम्बे अरसे से विवाद चला आ रहा है। दोनों देशों से सटी अन्तरराष्ट्रीय सीमा की भौगोलिक स्थितयां इस विवाद में अहम कड़ी हैं। जिन भौगोलिक परिस्थितयों में भारत को चीन से मुकाबले के लिए खुद को तैयार करना था, उस दिशा में क्या तेजी से काम हुआ है,यह लाख टके का सवाल है। हालांकि भारत ने चीन की सीमा तक अपने संसाधन बढ़ाए हैं। अरुणाचल प्रदेश से असम तक और लेह लद्दाख से सटी सीमा तक काफी कुछ आधारभूत संरचनाएं विकसित की गई है, लेकिन इनकी धीमी गति हमेशा से चिंता का विषय बनी हुई है। मसलन भारत-चीन सीमा से सटे इलाकों में भारत को वर्ष 2012 तक 73 सड़कों का विकास करना था, लेकिन आंकड़ा 21 तक ही पहुंच पाया और अब इस काम को करने की समय सीमा भी वर्ष 2019-20 तक बढ़ाई जा चुकी है। इसी तरह पहाड़ी व दुर्गम इलाकों में ऑपरेशनल तैयारियों को बेहतर ढंग से अमलीजामा पहनाने के लिए गठित की गई भारतीय थल सेना की माउंटेन स्ट्राइक कोर की गति भी उतनी तेज नहीं है, जितना तेज उसे होना चाहिए था। कोर आज भी समग्र संसाधनों से लैस नहीं हो पाई है। लेकिन इसका आशय यह नहीं है कि भारत चीन के मुकाबले खुद को कमजोर पाता है। अरुणाचल प्रदेश और असम के अग्रिम इलाकों में हवाई पट्टियों का विकास और आज की तारीख में वायुसेना की रीढ़ की हड्डी माने जाने वाले सुखोई-30 विमानों की स्क्वाड्रनों की भारत-चीन सीमा पर मौजूदगी भारत की सामरिक तैयारियों में मजबूती को आश्वस्त करती है। इसके अलावा इसी साल शुरू हुए ढोला-सदिया ब्रिज, जिले असम के प्रमुख लोक गायक भूपेन हजारिका के नाम पर समर्पित किया गया है, ने भी पूर्वोत्तर राज्यों में सीमा तक सेना की पहुंच को सुगम बनाने का काम किया है। ऐसे में जानकार कहते हैं कि भारत ने धीरे धीरे ही सही, चीन को साधने की सामरिक तैयारी को योजनाबद्ध रूप से पूरा करने का प्रयास किया है, लेकिन अभी इस दिशा में बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।
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