Saturday, October 28, 2017

बुरे फंसे खाड़ी मे्ं जाकर

हम बेवतनों को याद वतन की मिट्टी आई है...
-सुरेश व्यास
जयपुर। एक तरफ जहां देश की नरेंद्र मोदी सरकार अन्तरराष्च्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में लगातार गिरावट के बावजूद भी पेट्रोल पम्पों पर पेट्रोल-डीजल महंगा होने के कारण आलोचना का शिकार हो रही है, वहीं दूसरी ओर तेल की कम हो रही कीमतों ने खाड़ी देशों की आर्थिक स्थिति को ऐसा हिला दिया है कि इसका बुरा असर वहां मजदूरी करने गए विदेशी मजदूरों की मानसिक व आर्थिक स्थिति पर पड़ने लगा है। हाल ही एक रिपोर्ट आई है, जिसके मुताबिक अकेले ओमान में भारत से अच्छी खासी धनराशि कमाने गए करीब पांच दर्जन भारतीय नागरिकों के फंसे होने का उल्लेख हे। इसमें करीब दो दर्जन लोग राजस्थान के भी हैं। हालत यह है कि इन मजदूरों को मजबूरन दो दिन में एक बार रोटी खानी पड़ रही है, ताकि वे घर वापसी के इंतजामों के लिए पैसा बचा सके।

ओमान में फंसे भारतीय मजदूरों ने वतन वापसी के लिए दूतावास के गुहार लगाई है, लेकिन वहां से भी औपचारिकताएं पूरी होने में लगभग एक माह का समय लगने की सम्भावना में खाड़ी देश में फंसे मजदूरों के परिवारों को भी चिंता में डाल रखा है। मजदूरों ने मीडिया एजेंसियों के साथ अपनी तकलीफ साझा की है। ये वे मजदूर हैं, जो दिल्ली की एक प्लेसमेंट एजेंसी के जरिए ओमान गए थे। मजदूरों का कहना है कि इन्हें वहां की एक कंस्ट्रक्शन कम्पनी में मिस्त्री व कारपेंटर के रूप में लगाने का वादा किया गया, लेकिन मंदी की मार ऐसी पड़ी कि कम्पनी ने पहले तनख्वाह देने में देरी शुरू की और कुछ माह बाद तनख्वाह देनी बंद भी कर दी। मजदूरों ने हक मांगा तो पहले उनके रहने के कमरों की बिजली तक काट दी गई और बाद में उन्हें खदेड़ तक दिया गया। अब मजदूरों को न खाने को रोटी मिल रही है और न ही पीने को पानी।

मिट्टी में मिले सपने
राजस्थान की एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के सीकर, चूरू, झुंझुनूं व नागौर जिलों के कई मजदूर निजी प्लेसमेंट एजेंसी के जरिए मस्कट गए थे। वहां उन्हें अल रमूज ग्रुप ऑफ कम्पनीज में मिस्त्री व कारपेंटर के रूप में भर्ती किया गया। कुछ महीने बाद ही कम्पनी ने काम से हाथ खींचने शुरू कर दिए और मिस्त्री व कारपेंटर्स से पत्थर तुड़वाने, जमीन खुदवाने व सफाई करवाने का काम लिया जाने लगा। छह माह के दौरान कम्पनी ने तनख्वाह भी दो माह की ही दी। फिर तनख्वाह देनी भी बंद कर दी गई। वेतन मांगा तो खाना-पानी बंद कर दिया गया। पिछले 15 दिन से ये मजदूर भूखे मरने की स्थिति में हैं।

वापसी का भी मांग रहे पैसा
राजस्थान के चूरू जिले के तालछापर से मस्कट में नौकरी करने गए एक मजदूर का आरोप है कि उसने अच्छी कमाई के चक्कर में दिल्ली की प्लेसमेंट कम्पनी को 80 हजार रुपए देकर गए थे। अब जब वेतन और खाना-पानी नहीं मिल रहा तो मजदूरों ने कम्पनी से वापस वतन भेजने का अनुरोध किया, लेकिन मजदूरों से उल्टे साठ हजार रुपए मांगे जा रहे हैं। एक तरफ तनख्वाह रुकी पड़ी है। खाने के लाले हैं। फिर 60 हजार रुपए कहां से लाएं। अब भारत सरकार ही हस्तक्षेप करे तो जान बच सकती है।

मंदी ने बिगाड़ी हालत
जानकारों का कहना है कि ये सब कच्चे तेल की कीमतों में कमी का असर है। पिछले एक साल से अरब देशों कि हालत खराब है। सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को छोड़ दें तो हर खाड़ी देश मंदी की मार झेल रहा है। पिछले साल करीब 58 हजार लोगों को रोजगार देने वाली कम्पनी ने अचानक काम बंद कर दिया, सिर्फ मंदी की वजह से। असर पड़ा गरीब मजदूरों पर, कारण कि इन देशों में अधिकांश मजदूर विदेशी हैं। इन मजदूरों को काम नियोक्ता कम्पनियों से हुए करार के आधार पर मिलता है। कई कम्पनियां मजदूरों के पासपोर्ट अपने पास रख लेती हैं। मंदी के दौर में तनख्वाह चुकाना तो दूर कम्पनियां घर लौटने के इच्छुक मजदूरों से एवज में पैसा तक मांगती हैं पासपोर्ट लौटाने के लिए। ओमान के मस्कट में फंसे मजदूरों के साथ भी ऐसा ही हो रहा है।

लाखों भारतीय करते हैं काम
खाड़ी देशों की रिपोर्टिंग में लम्बा अनुभव रखने वाले केरल के पत्रकार रेजिमोहन कुट्टप्पन ओमान सरकार के गत अगस्त माह तक के आधिकारिक आंकड़ों का हवाला देते हुए कहते हैं कि अकेले ओमान में करीब 7 लाख भारतीय मजदूर व कामगार काम कर रहे हैं,लेकिन मंदी का सीधा असर विदेशी कामगारों पर पड़ रहा है। न सिर्फ ओमान, बल्कि बहरीन, कुवैत व कतर के अलावा सऊदी अरब व यूएई की हालात भी कमोबेश ऐसे ही हैं। हां, यह जरूर है कि ओमान सबसे ज्यादा प्रभावित है।

कितना कर्ज लें
विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार कच्चे तेल की कमी के कारण ओमान में राजकोषीय घाटा लगातार बढ़ रहा है। तेल उत्पादक देशों का इस स्थिति में उत्पादन घटाने पर जोर भी कोढ़ में खाज का काम कर रहा है। इस हालत में ओमान अन्य देशों से कर्ज लेने पर मजबूर है। उसकी उम्मीद अब सिर्फ और सिर्फ पर्यटन व मछली पालन पर टिकी नजर आ रही है। ओमान के श्रम विशेषज्ञों का कहना है कि मंदी के कारण कामबंदी, वेतन में कटौती, वेतन का भुगतान नहीं होना और मजदूरों की सारसम्भाल ओमान की सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही है और इसका एकमात्र कारण मंदी ही है।

नित नई गुहार

भारतीय विदेश मंत्रालय का अनुमान है कि खाड़ी देशों में रह रहे हजारों भारतीय मजदूरों पर तेल की कीमतों में मंदी का बुरा असर पड़ा है। एक मीडिया रिपोर्ट ने सूचना के अधिकार के तहत जुटाई गई जानकारी का हवाला देते हे रिपोर्ट किया है कि अकेले मस्कट में गत जुलाई तक भारतीय मजदूरों को तनख्वाह नहीं मिलने या अन्य समस्याओं के बारे में भारतीय दूतावास को लगभग डेढ़ हजार शिकायतें मिल चुकी है। पिछले साल भी लगभग ऐसी ही करीब दो हजार शिकायतें आई थी, लेकिन इस साल शिकायतों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

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