Thursday, October 5, 2017

जब खालिस्तान के निशाने पर आया राजस्थान

दूधिए ने पकड़वाए आतंकी

लगभग 23 साल बाद राजस्थान का संगीन अपहरण कांड गुरुवार को पूरी दुनिया में एक बार सुर्खियों में आ गया। यह है राजेंद्र मिर्धा अपहरण कांड और इस मामले में जयपुर की एक स्थानीय अदालत ने खालिस्तान लिब्रेशन फोर्स के एक आतंकी को दोषी करार दिया है। आतंकी पंजाब के लुधियाना में भटारी गांव के मूल निवासी हरनेक सिंह को अदालत कल सजा सुनाएगी। इस मामले में एक दम्पती दयासिंह लाहोरिया व उसकी पत्नी सुमन सूद को अदालत लगभग 13 साल पहले ही सजा सुना चुकी है।
इस मामले ,का रोचक पहलू ये है कि पुलिस एक दुधिए की मदद से आतंकियों तक पहुंची थी। दूधिए की सूचना के आधार पर न सिर्फ अपहृत राजेंद्र मिर्धा को मुक्त करवाया गया, बल्कि पुलिस और आतंकियों की मुठभेड़ में खालिस्तान लिब्रेशन फोर्स का एक दुर्दांत आतंकी नवनीतसिंह कादिया मारा गया और दो अन्य मौके से फरार हो गए। खासियत की बात यह है कि कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे और देश के पहले सबसे चर्चित आर्थिक घोटाले हर्षद मेहता कांड की जांच के लिए गठित संयुक्त संसदीय समिति के मुखिया रामनिवास मिर्धा के पुत्र राजेंद्र का पंजाब के दुर्दांत आतंकी देवेंद्रसिंह भुल्लर की रिहाई की मांग पर अपहरण करने वाले आतंकियों का सुराग देने वाले दूधिए को पुलिस को वैसी ही सुरक्षा प्रदान करनी पड़ी, जैसी आतंकी खतरे की स्थिति में आज के राजनेताओं को प्रदान की जाती है।
दरअसल, व्यवसायी और पिता की राजनीतिक छवि से कोसों दूर राजेंद्र का पंजाब के आतंकियों ने 17 फरवरी 1995 को उस वक्त अपहरण कर लिया था, जब वे मोर्निग वॉक के लिए अपने घर से निकले। सफेद मारूति कार में आए तीन आतंकियों ने हथियार के बल पर राजेंद्र मिर्धा को उठाया और जयपुर के ही मोडल टाऊन, मा्लवीय नगर में बंधक बनाकर लगभग नौ दिन तक रखा। इन लोगों ने अपहरण के लगभग एक डेढ़ घंटे बाद ही राजेंद्र की पत्नी उदयरानी मिर्धा को फोन करके कहा कि राजेंद्र उनके कब्जे में हैं। वे उन्हें दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर 18-19 जनवरी को पकड़े गए देवेंद्र सिंह भुल्लर की रिहाई तक नहीं छोड़ेंगे। आतंकियों ने मामले की जानकारी पुलिस को देने या फोन को टेप करवाने की स्थिति में राजेंद्र को शारीरिक क्षति पहुंचाने की धमकी भी दी। उदयरानी ने अपने देवर और राजस्थान सरकार में मंत्री रहे हरेंद्र मिर्धा को अपहरण के बारे में जानकारी दी। उन्होंने जयपुर के अशोक नगर थाने में मामला दर्ज करवा दिया, लेकिन पुलिस के हाथ खाली ही रहे। इसी दौरान मालवीय नगर इलाके के मोडल टाउन में दूध की सप्लाई करने वाले हनुमान बागड़ा को मकान संख्या बी-117 में रहने वाले लोगों के बारे में संदेह हुआ। इन लोगों ने कुछ दिन पहले ही प्रोपर्टी डीलर्स के जरिए यह मकान एक स्था्नीय निवासी से खरीदा था और रजिस्ट्री के लिए दिल्ली के अलग अलग बैंकों से 45-45 हजार के तीन डिमांड ड्राफ्ट बनवाए थे। पुलिस ने इस मकान पर नजर रखी और जब भी पुलिस वहां जाती तो वहां रहने वाली महिला कहती कि उसका बेटा बीमार है, इसलिए वे लोग बाहर नहीं निकलते। दूधिए की सूचना पुलिस को सही लगी और आखिर पुलिस ने दल बल के साथ इस मकान पर 25 फरवरी को दबिश दी तो आतंकियों ने गोलाबारी शुरू कर दी। इस दौरान पुलिस की गोली से एक कुख्यात खालिस्तानी आतंकी कादिया मारा गया और दो अन्य भाग निकले। पुलिस ने राजेंद्र को सकुशल मुक्त करवा लिया। फरार हुए आतंकी दयासिंह लोहारिया और उसकी पत्नी सुमन की तलाश शुरू हुई, लेकिन वे दोनों अमरीका भाग गए। वहां से अवैध रूप से कनाडा भागने की कोशिश कर रहे दम्पती को अमरीकी पुलिस ने मिनोसोटा हवाई अड्डे पर 3 अगस्त 1995 को दबोच लिया। लम्बी कानूनी प्रक्रिया के बाद अमरीकी अदालत के आदेश पर दोनों को प्रत्यापित किया गया। लेकिन मौके से भाग निकला आतंकी हरनेक सिंह पुलिस की गिरफ्त से दूर था। इस दौरान लाहोरिया दम्पती पर जयपुर की अदालत में मामला शुरू हुआ। पहले इन पर टाडा की धाराएं लगाई गई और अजमेर में स्थित विशेष टाडा कोर्ट में सुनवाई होती रही, लेकिन उनके वकीलों ने कहा कि प्रत्यर्पण की शर्तों के हिसाब से टाडा मे मामला नहीं चलाया जा सकता तो मामला फिर जयपुर की अदालत को भेजा गया। अदालत ने लम्बी सुनवाई के बाद 20 अक्टूबर 2004 को दोनों को दोषी माना। दयासिंह को उम्र कैद की सजा सुनाई गई। सुमन सूद को सात साल की जेल हुई। राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में अपील की तो सुमन को भी उम्र कैद की सजा सुनाई गई, लेकिन मौके से भाग निकला हरनेकसिंह पुलिस की पकड़ से दूर था। उसे पंजाब पुलिस ने 2004 मे गिरफ्तार किया। उसे  फरवरी 2007 को राजस्थान लाकर मिर्धा अपहरण मामले में मुकदमा चलाया गया, तब से हरनेक जेल में है। राजस्थान उच्च न्यायालय के निर्देश पर जयपुर की अपर जिला न्यायाधीश संख्या 3 की अदालत ने लगातार सुनवाई की और 23 सितम्बर को सुनवाई पूरी होने के बाद गुरुवार को हरनेक को दोषी करार दिया गया। उसे शुक्रवार को सजा सुनाई जाएगी।

दुधिए के साथ चलते थे गनमैन

पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि राजेंद्र मिर्धा का अपहरण करने के बाद आतंकियों ने उसकी पत्नी को फोन किया, लेकिन उनका सुराग लगाना मुश्किल हो रहा था। ऐसे में दूधिए हनुमान बागड़ा की सूचना ने सारे मामले की तह में जाने की राह प्रशस्त की। चूंकि 1995 में इस घटना ने पंजाब में आतंकवाद के फिर खड़ा होने का खतरा पैदा कर दिया था, ऐसे में बागड़ा को तब तक पुलिस ने सुरक्षा प्रदान की, जब तक मामला मंजिल तक नहीं पहुंचा। दूधिए के साथ हर वक्त पुलिस के गनमैन साये की तरह चलते थे।

परिवार नहीं करना चाहता बात

दूधिए का परिवार आज भी जयपुर के जगतपुरा इलाके में रहता है, लेकिन घटना के बाद परिवार को मिली धमकियों से उनका परिवार आज भी इतना आतंकित है कि इस मामले पर कोई बात नहीं करना चाहता। इसके अलावा करीब तीन साल पहले बागड़ा पर हुए ऐसिड अटैक ने भी परिवार के हौंसले पस्त कर रखे हैं। हालांकि अब बागड़ा को पुलिस सुरक्षा नहीं है,लेकिन कल आने वाले फैसले के मद्देनजर परिवार में खुशी भी है तो भय भी है।

मिर्धा का हो चुका निधन

जयपुर के् पोश इलाके सी स्कीम में आजाद मार्ग पर रहने वाले राजेंद्र मिर्धा का वर्ष 2009 में हार्ट अटैक से निधन हो गया था। उनके पिता रामनिवास मिर्धा का निधन भी हो चुका है, लेकिन अपहरण का मामला दर्ज करवाने वाले उनके भाई हरेंद्र मिर्धा आज भी राजस्थान की कांग्रेस राजनीति में सक्रिय हैं। वे 1998 में बनी अशोक गहलोत सरकार में काबिना मंत्री रह चुके हैं। आज मारवाड़ की कांग्रेस राजनीति के पर्याय रहे नागौर जिले में अहम कड़ी बने हुए हैं।

No comments:

Post a Comment