-सुरेश
व्यास
दुनिया
की पांच सर्वश्रेष्ठ वायुसेनाओं
में शुमार भारतीय वायुसेना
8 अक्टूबर
2017 को
85 साल
की
हो गई। पहले रॉयल एयरफोर्स
और अब इंडियन एयरफोर्स। मौका
पड़ने पर हर कसौटी
पर
खरी उतरने वाली वायुसेना के
बुलंद हौंसलों पर कोई संदेह
नहीं है और न ही वायुसैनिकों
की
कर्तव्य परायणता पर कोई अंगुली
उठा सकता है। इस बार वायुसेना
दिवस के मौके
सालाना
प्रेस कॉन्फ्रेंस और बाद में
हिंडन में आयोजित वायुसेना
दिवस समारोह के दौरान
वायुसेनाध्यक्ष
एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ के
दो बयान, जिनमें
उन्होंने वायुसेना की
क्षमताओं
को उजागर किया है,
चर्चा में
बने हुए हैं। एयर मार्शल धनोआ
का पहला बयान,
जिसमें
उन्होंने कहा कि भारतीय वायुसेना
दो मोर्चों पर लड़ने में पूरी
तरह सक्षम है। साथ ही
आदेश
मिला तो पाकिस्तान के परमाणु
ठिकानों को भी नैस्तनाबूद
करने की पूरी तैयारी है।
उनका
दूसरा बयान हिंडन में आया,
जिसमें
उन्होंने कहा कि वायुसेना
किसी शॉर्ट नोटिस पर
वायुसेनाध्यक्ष
एयर मार्शल धनोआ के ये बयान
निश्चित रूप से नभ प्रहरियों
के उच्च मनोबल और
सामरिक ताकत को इंगित करते
हैं, लेकिन
जिस तरह वायुसेना के पास लगातार
लड़ाकू
विमानों
का टोटा होता जा रहा है,
उसके मद्देनजर
यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या
वाकई
वायुसेना
इस हालात में भी दो मोर्चों
(चीन
और पाकिस्तान)
पर लड़ने
की स्थिति में है?
वह भी
उस
स्थिति में जब 85
साल पुरानी
वायुसेना के पास आज भी स्वदेशी
लड़ाकू विमानों की एक
भी
स्क्वाड्रन खड़ी नहीं हो पाई
है। वायुसेना के सामने सत्तर
के दशक से मजबूती का पर्याय बने
रहे मिग विमानों की विदाई और
उनकी जगह नए विमान आने में हो
रही देरी भी एक बड़ी
चुनौती है।
कम
हो रही हैं स्क्वाड्रन की
संख्या
वायुसेना
के पास आज की तारीख में लड़ाकू
विमानों की 42
स्क्वाड्रन
(प्रत्येक
स्क्वाड्रन में 16
से
18 विमान)
होनी चाहिए,
लेकिन
वायुसेना अभी मात्र 33
स्क्वाड्रन
से ही काम चला रही है।
यह
पिछले एक दशक में वायुसेना
की लड़ाकू विमान स्क्वाड्रन
का सबसे न्यूनतम स्तर है।
पिछले
दशक तक वायुसेना के पास 39.5
स्क्वाड्रन
हुआ करती थी,
लेकिन विमानों
की
दुर्घटनाओं
व पुराने विमानों की विदाई
के चलते स्क्वाड्रन की संख्या
लगातार कम हो रही है।
अगले
दो-तीन
साल चुनौतीपूर्ण
रक्षा
विशेषज्ञों की मानें तो वायुसेना
के सामरिक इतिहास में सत्तर
के दशक से अहम भूमिका
अदा
करते आ रहे रूस निर्मित लड़ाकू
विमान मिग-21
की करीब 11
स्क्वाड्रन
आने वाले दो
तीन
साल में धीरे धीरे विदा होती
जाएगी। यानी करीब 220
विमान
वायुसेना के बेड़े से कम
होने
वाले हैं,
लेकिन इनकी
भरपाई का काम बहुत ही धीमी गति
से चल रहा है। ऐसे में जब
मिग-21
विमान फेज
आउट हो जाएंगे तो वायुसेना
की चुनौती और बढ़ती चली जाएगी।
जगुआर
व मिग-29 भी
होंगे विदा
वायुसेना
से अगले पांच वर्ष के दौरान
डबल इंजन वाले जगुआर और मिग-29
विमान भी
विदा
होने
हैं। इनकी लगभग 8
स्क्वाड्रन
विदा हो जाएगी। इनकी भरपाई
पर भी खरीद नीति में
निरंतर
किए जा रहे बदलावों और मैक इन
इंडिया कार्यक्रम के तहत
अन्तरराष्ट्रीय विमान
निर्माता
कम्पनियों से समझौते की धीमी
गति चिंता का सबब बनी हुई है।
तेजस
का इंतजार
वायुसेना
के लिए स्वदेश में विकसित और
हिन्दुस्तान एयरोनोटिकल्स
लिमिटेड (एचएएल)
में
बन
रहे हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए)
तेजस का भी
इंतजार ही बना हुआ है। एचएएल
ने वर्ष
2005
में वायुसेना
से वादा किया था कि वह वर्ष
2018 तक
एलसीए तेजस मार्क-1
के 40
विमान
उपलब्ध करवा देगी,
लेकिन उत्पादन
की गति काफी धीमी है। ऐसे में
संशय बना हुआ
है
कि क्या वाकई निर्धारित अवधि
तक 40 तेजस
विमान वायुसेना के बेड़े में
शामिल हो
पाएंगे।
यहां उल्लेखनीय है कि वायुसेना
ने एचएएल से 123
तेजस विमान
खरीदने का करार
किया
है। इसकी शुरुआती स्क्वाड्रन
बेंगलुरू में स्थापित करने
की प्रक्रिया भी चल रही है।
लम्बा
हुआ राफैल का इंतजार
वायुसेना
की लम्बे समय से चली आ रही
मल्टीरोल मीडियम रैंज कॉम्बेट
एयरक्राफ्ट
(एमएमआरसीए)
की मांग
हालांकि पिछली यूपीए सरकार
के वक्त में सिरे चढ़ने लगी
थी,
लेकिन
देश में सत्ता परिवर्तन के
साथ इसकी गति पर भी जैसे ब्रेक
लग गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी
के नेतृत्व वाली नई सरकार ने
एमएमआरसीए के तहत फ्रांस से
126 राफैल
लड़ाकू
विमान
खरीदने के सौदे को बदल कर 36
विमान खरीदने
का नए सिरे से करार किया।
हालांकि
फ्रांस की डेसाल्ट कम्पनी
में इसी महीने भारतीय वायुसेना
के लिए राफैल विमान
बनाने
के लिए स्टील शीट कटिंग की
रस्म अदायगी हो चुकी है यानी
निर्माण शुरू हो चुका है।
फिर
भी करार के अनुसार राफैल की
पहली खेप वर्ष 2020
तक आने के
बारे में अभी कुछ
नहीं
कहा जा सकता।
मैक
इन इंडिया का फंडा
अब
सवाल यह है कि वायुसेना के लिए
जरूर लड़ाकू विमानों की व्यवस्था
कैसे होगी?
मोदी
सरकार
ने मैक इन इंडिया प्रोग्राम
के तहत दुनिया की दो बड़ी
कम्पनियों के साथ करार
करने
की दिशा में कदम बढ़ाया है
ताकि इन विमानों का निर्माण
भारत में ही शुरू किया जा
सके।
इसके लिए रक्षा मंत्रालय एफ-16
फाल्कन
लड़ाकू विमान बनाने वाली
अमरीकी
कम्पनी
लॉकहिड मार्टिन व ग्रीपन
लड़ाकू विमान बनाने वाली
स्वीडन की कम्पनी साब को
रिक्वेस्ट
फॉर इन्फोर्मेशन (आरएफआई)
भेज रहा है।
वायुसेनाध्यक्ष एयर मार्शल
धनोआ ने
हिंडन
में कहा कि इसी महीने आरएफआई
दोनों कंपनियों को भेज दी
जाएगी। इसकी
सहमति
आते ही दोनों कंपनियां भारत
में निर्माण करने के लिए स्थानीय
कंपनियों से करार
करेगी।
लॉकहिड मार्टिन ने टाटा और
साब ने अडानी समूह के साथ मिलकर
लड़ाकू विमान
निर्माण
के कारखाने लगाने पर सहमति
जता दी है। लेकिन कब सहमति
आएगी, कब
करार
होंगे
और कब काम शुरू होगा,
इस बारे में
स्थिति अभी तक साफ नहीं है।
सारा
भार सुखोई पर
रूस
में बने मल्टी रोल लड़ाकू
विमान सुखोई-30
एमकेआई अभी
भारतीय वायुसेना की रीढ़
की
हड्डी हैं। लगभग 250
सुखोई विमानों
के बेड़े ने वायुसेना को मजबूती
दी है, इसमें
कोई
संशय
नहीं है। पश्चिम की रेगिस्तानी
और मैदानी सीमा से लेकर
उत्तर-पूर्व
की पहाड़ी सीमाओं
पर
सुखोई की मौजूदगी देश के लोगों
को आकाशीय सुरक्षा के मामले
में आशान्वित करने के
लिए
काफी है, लेकिन
जब तक नए विमान नहीं आएंगे,
लगता है
वायुसेना को मजबूत हौंसले
के
दम पर ही सामरिक चुनौतियों
का सामना करना पड़ेगा।
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