गुरदासपुर उप-चुनाव
-सुरेश व्यास
पंजाब के गुरदासपुर में संसदीय और केरल के वंगारी विधानसभा उपचुनाव में करारी
हार से भाजपा नेताओं को चौंका दिया है। कांग्रेस ने गुरदासपुर संसदीय चुनाव में न
सिर्फ अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल की है, वहीं केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ के प्रत्याशी ने अपनी सीट
बरकरार रख आक्रामक प्रचार के जरिए इस दक्षिणी राज्य में खूंटा गाढ़ने की भाजपा की
कोशिशों को बड़ा झटका दिया है।
दीपावली से महज चार दिन पहले कांग्रेस पर बरसी दोहरी वोट लक्ष्मी यानी दोनों
उपचुनावों में मिली जीत जहां गुजरात और हिमाचल प्रदेश के प्रस्तावित विधानसभा चुनावों में कार्यकर्ताओं का मनोबल
ऊंचा करने की दिशा में संजीवनी का काम करेगी, वहीं लगातार चुनावी जीत के पहाड़ पर
चढ़ी भाजपा को आत्ममंथन के लिए विवश करेगी। कारण कि भाजपा नेता न सम्भले तो न
सिर्फ गुजरात व हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव बल्कि राजस्थान में प्रस्तावित
दो संसदीय उपचुनाव व एक विधानसभा उपचुनाव में भी आर्थिक नीतियों व पेट्रोलियम
पदार्थों की लगातार बढ़ रही महंगाई को लेकर अंडर करंट के रूप में मौजूद जनाक्रोश
पार्टी के लिए खतरे की घंटी बजा सकता है, भले ही देश में कुछेक अपवादों को छोड़कर उप
चुनावों के नतीजों का फायदा सत्ताधारी पार्टी को ही मिलने की परम्परा सुस्थापित
रही है।
यह आशंका इसलिए भी खड़ी होती है क्यों कि भाजपा नेता हकीकत को स्वीकार करने से
बचते रहे हैं। अर्थ व्यवस्था को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमनोहन सिंह से लेकर
भाजपा के दिग्गज नेता यशवंत सिन्हा और रिजर्व बैंक से लेकर अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा
कोष तक के अनुमानों को भाजपा के नेताओं ने एक तरह से नकारा ही है। और तो और
गुरदासपुर उप चुनाव के नतीजों से कुछ घंटे पहले वाशिंगटन यात्रा पर गए केंद्रीय
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जीएसटी, नोटबंदी व अर्थ व्यवस्था को लेकर पूछे गए
सवालों पर.यह जवाब देकर कि ‘गुजरात के नतीजे आने दीजिए पता चल जाएगा,
जनता किसके साथ है’ भाजपा नेताओं के दंभ को ही रेखांकित किया है।
जीएसटी की मार तो नहीं?
जीएसटी लागू होने के बाद देशभर में शुरू हुए आन्दोलनों में से एक सबसे बड़ा
आंदोलन गुजरात के सूरत में सामने आया और आज भी वहां के लोगों में जीएसटी लागू करने
के तरीके को लेकर भाजपा सरकार के प्रति आक्रोश है, यह रोजाना सामने आ रहा है। न
सिर्फ गुजरात बल्कि देशभर में व्यापारियों में जीएसटी पर आक्रोश है और जब पानी सिर
के ऊपर से गुजरने की स्थित आई है तो केंद्र सरकार सम्भली भी है, लेकिन व्यापारियों
को अब भी राहत मिलना बाकी है। ऐसे में यदि सवाल उठें कि क्या गुरदासपुर और वंगारी
(केरल) के उप चुनाव परिणाम जीएसटी को लेकर भाजपा के प्रति बढ़ रही नाराजगी का
नतीजा हैं?
क्या ये बढ़ रही
महंगाई रोकने में भाजपा के प्रति पनप रहे गुस्से का कोई संकेत है? क्या मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर उबल
रहे गुस्से ने चुनावी नतीजों को प्रभावित किया है, तो इसे भाजपा नेतृत्व को गम्भीरता से लेना होगा यह मानकर
कि कम से कम गुरदासपुर में इतनी करारी हार कहीं इसका संकेत तो नहीं है?
झटका तो लगा है...
हालांकि इन सवालों को लेकर भाजपा की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन भाजपा के नेता अन्दरखाने मानने लगे हैं
कि गुरदासपुर में बड़ी हार एक झटका तो है। कारण कि अभिनेता से नेता बने विनोद
खन्ना गुरदासपुर से चार बार सांसद रहे और यह सीमावर्ती इलाका हिन्दूवादी मतदाताओं
के बाहुल्य के कारण भाजपा का गढ़ बन चुका था। विनोद खन्ना का गत 27 अप्रेल को मुम्बई में निधन हुआ। इसके बाद हुए
उपचुनाव से पहले माना जा रहा था कि उप चुनाव छह महीने पहले ही विधानसभा चुनाव में
भाजपा-अकालीदल गठबंधन की करारी हार से टूटा हौंसला वापस खड़ा करने में मदद करेगा।
पंजाब कांग्रेस की गुटबाजी के चलते भी भाजपा आशान्वित थी, लेकिन उसे इतनी बड़ी हार का शायद अन्दाजा भी
नहीं था।
कांग्रेस की सबसे बड़ी जीत
गुरदासपुर उपचुनाव में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, पूर्व लोकसभाध्यक्ष स्व. बलराम जाखड़ के
पुत्र और कांग्रेस प्रत्याशी सुनील जाखड़ की यह इस संसदीय क्षेत्र में अब तक की
सबसे बड़ी जीत है। पिछले आम चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के रूप में विनोद खन्ना ने 1.36 लाख मतों से जीत हासिल की थी। उन्होंने
कांग्रेस के दिग्गज नेता और तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष प्रतापसिंह बाजवा को हराया था।
हालांकि खन्ना 1980
के संसदीय चुनाव
में कांग्रेस प्रत्याशी सुखबंश कौर भिंडर की 1.51 लाख मतों से जीत का रिकार्ड नहीं तोड़ पाए, लेकिन आज घोषित हुए उप चुनाव के नतीजों में जाखड़ ने यह रिकार्ड भी तोड़ दिया
और 1,93,219
मतों से भाजपा
प्रत्याशी मशहूर व्यवसायी और देश में सबसे बड़ी सिक्यूरिटी एजेंसी चलाने वाले
स्वर्णसिंह सलारिया का लोकसभा पहुंचने का सपना चकनाचूर कर दिया। इस उप चुनाव में
पंजाब के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल की प्रतिष्ठा भी भाजपा के पोल
मैनेजर के रूप में दांव पर भी और यह उनके व अकाली दल के लिए विधानसभा चुनाव की हार
के सदमे से उबरने का मौका भी था, लेकिन बादल नाकाम रहे। विधानसभा चुनाव में भाजपा-अकाली दल ने हालांकि
गुरदासपुर की 9
में से 2 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन संसदीय उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी
को सभी नौ विधानसभा क्षेत्रों में भारी बढ़त मिली।
संकेत है, सम्भल जाओ
हालांकि मात्र गुरदासपुर संसदीय उपचुनाव के नतीजे को भाजपानीत केंद्र की एनडीए
सरकार की आर्थिक नीतियों के खिलाफ जनादेश नहीं माना जा सकता, लेकिन भाजपा को आगामी गुजरात व हिमाचल प्रदेश
के विधानसभा चुनावों के दौरान सम्भल कर चलने का संकेत जरूर है। क्योंकि भाजपा की गुरदासपुर
में हार कांग्रेस के लिए गुजरात-हिमाचल में भी संजीवनी का काम करेगी। कांग्रेस किस
कद्र उत्साहित है, उसका अंदाज गुरदासपुर जीत के बाद आई कांग्रेस नेताओं की
प्रतिक्रियाओं से लगाया जा सकता है।
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