Tuesday, October 10, 2017

Rajasthan Byeelection

राजस्थान में कांग्रेस-भाजपा के लिए अग्नि-परीक्षा से कम नहीं है उपचुनाव
-सुरेश व्यास
जयपुर। राजस्थान में अजमेर और अलवरी संसदीय क्षेत्र तथा भीलवाड़ा जिले की मांडलगढ़ विधानसभा सीट के लिए प्रस्तावित उप चुनाव सत्ताधारी भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। हालांकि चुनाव आयोग ने अभी इन तीन क्षेत्रों के लिए उप चुनाव की तारीखों का एलान नहीं किया है, लेकिन इन चुनावों ने अभी से दोनों ही दलों के नेताओं के दिल में धुकधुकी मचा रखी है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अभी से अजमेर व अलवर के धुआंधार दौरों में व्यस्त हो रही है तो प्रदेश कांग्रेसाध्यक्ष सचिन पायलट के अजमेर के अजमेर दौरे व मुख्यमंत्री के गृह जिले झालावाड़ तक निकाली गई किसान न्याय यात्रा में उमड़ी भीड़ ने कांग्रेस नेताओं को उत्साहित कर रखा है।
अजमेर संसदीय सीट पूर्व केंद्रीय मंत्री सांवरलाल जाट के गत अगस्त में निधन से खाली हुई है, जबकि अलवर सीट सांसद चांदनाथ के निधन के बाद से खाली है। कांग्रेस इन दोनों सीटों को हथिया कर भाजपा को अगले विधानसभा चुनाव से पहले दबाव में लाने की कोशिश में है। इसी तरह मांडलगढ़ विधानसभा सीट पर भी कांग्रेस जातीय समीकरण का कार्ड खेल कर भाजपा को चुनौती देने की कोशिश में लगी है। मांडलगढ़ की सीट भाजपा विधायक कीर्ति कुमारी की स्वाइन फ्लू से निधन के बाद खाली हुई है।
उपचुनाव से पहले जीएसटी और नोटबंदी के कारण गिर रही विकास दर और देश की मौजूदा आर्थिक हालत, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय शाह की कंम्पनी के कथित घोटाले और किसानों में कर्ज माफी को लेकर फैल रहे असंतोष के कारण भाजपा नेताओं के माथे पर सिकन देखी जा सकती है, वहीं कांग्रेस इन मुद्दों के कारण उत्साह में तो है, लेकिन उसे उप चुनाव में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का डर अभी से सता रहा है, यही कारण है कि कांग्रेस ने राजस्थान के तीनों उप चुनावों में ईवीएम के साथ वीवीपेट मशीनों के इन्तजाम की मांग चुनाव आयोग से की है।
राजे ने संभाली कमान
उप चुनाव की घोषणा से पहले ही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने चुनाव की कमान अपने हाथ में ले ली है। उन्होंने अजमेर और अलवर के धुआंधार दौरों के दौरान सोशल इंजीनियरिंग पर जोर देते हुए विभिन्न समुदायों के लोगों से मुलाकात कर बंद कमरे में उनकी समस्याएं सुनी है। अजमेर तो उन्होंने ऐसी बैठकों के दौरान जिले के प्रभारी चिकित्सा मंत्री कालीचरण सर्राफ को भी भीतर नहीं आने दिया और लोगों से खुलकर अपनी बात रखने को कहा। इसी तरह अलवर में भी उन्होंने भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के बहाने प्रमुख लोगों से मुलाकात कर उनकी नब्ज टटोलने की कोशिश की। बैठक में राजे ने तीनों ही
उप चुनाव में पार्टी की जीत का आत्मविश्वास जताते हुए कहा कि अभी से स्थानीय नेताओं को चुनाव जीतने की तैयारी में जुट जाना चाहिए। चुनावी रणनीति के तहत राजे पहले ही दोनों संसदीय क्षेत्रों के प्रत्येक विधानसभा इलाकों में एक एक विधायक व प्रमुख नेताओं को जिम्मा सौंप चुकी है। अजमेर में तो प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र का जिम्मा प्रमुख मंत्रियों तक को दिया गया है।
सहानुभूति लूटने की कोशिश
सोशल इंजीनियरिंग या जातिगत आधार पर चुनाव लड़ने की रणनीति के साथ साथ भाजपा उप चुनाव के लिए सहानुभूति लूटने की कोशिश में भी है। इसके तहत कयास लगाए जा रहे हैं कि अजमेर में निवर्तमान सांसद स्व. सांवरलाल जाट के पुत्र रामस्वरूप और अलवर में महंत चांदनाथ के उत्तराधिकारी महंत बालक नाथ पर दाव खेला जा सकता है। इसी तरह मांडलगढ़ में भी दिवंगत हुई विधायक कीर्तिकुमारी के परिवार की हर्षिता को मैदान में उतारने पर गहन मंथन किया जा रहा है। भाजपा अलवर में यादव मतों की बहुलता के मद्देनजर पूर्व मंत्री जसवंत यादव पर भी दाव खेल सकती है, वहीं अजमेर में दिग्गज नेता व डेयरी के चेयरमैन रामचंद्र चौधरी राजे से मिलकर अपनी दावेदारी जता चुके हैं। फिर भी माना जा रहा है कि भाजपा की कोशिश सहानुभूति के मतों के सहारे नैय्या पार लगाने की होगी।
कांग्रेस उतार सकती है दिग्गजों को
जहां तक कांग्रेस का सवाल है, वह अजमेर व अलवर संसदीय क्षेत्रों में दिग्गजों पर दाव खेलने की तैयारी में है। अजमेर में प्रदेश कांग्रेसाध्यक्ष सचिन पायलट व अलवर में पूर्व केंद्रीय मंत्री भंवर जितेंद्रसिंह को ही मैदान में उतारे जाने की सम्भावना है, लेकिन मांडलगढ़ में कांग्रेस को जातिगत समीकरणों के आधार पर ही भाजपा को घेरना होगा। कांग्रेस के नेता मानते हैं कि मांडलगढ़ में स्थिति अच्छी नहीं है, लेकिन भीलवाड़ा से सांसद रहे कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव सीपी जोशी सरीखा कोई बड़ा नेता ताल ठोके तो भाजपा को चुनौती दी जा सकती है।
जातिगत मतों की गणित
अलवर संसदीय क्षेत्र में सर्वाधिक तीन लाख से ज्यादा मतदाता अनुसूचित जाति-जनजाति के हैं। इनके अलावा ढाई लाख जाट, दो लाख मुस्लिम, राजपूत व गुर्जर और डेढ़ लाख से ज्यादा ब्राह्मण, वैश्य और रावत मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। अलवर में दो लाख से ज्यादा यादव मतदाता हैं तो दो लाख ब्राह्मण,इतने ही मेव व अनुसूचित जाति तथा एक लाख मीणा, 80 हजार माली व 50 हजार राजपूत मतदाता हैं। भाजपा सोशल इंजीनियरिंग के जरिए अपनी स्थित मजबूत करने की कोशिश में है, जबकि कांग्रेस भाजपा के प्रति असंतोष को भुनाने के साथ साथ अपने परम्परागत मतों को वापस हासिल करने की कोशिश कर रही है।
भाजपा की दिक्कत
वैसे तो उप चुनाव में आमतौर पर सत्ताधारी पार्टी को ही ज्यादा फायदा होता है, लेकिन इस बार भाजपा के सामने कई दिक्कतें हैं। जातिगत समीकरणों के अनुसार उसे गैंगस्टर आनन्दपाल सिंह के एनकाउंटर और इसकी सीबीआई जांच करवाने पर अभी तक फैसला नहीं हो पाने से राजपूत मतदाताओं की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा किसानों की कर्ज माफ नहीं होने और पर्याप्त बिजली व पानी नहीं मिलने के प्रति नाराजगी भी एक बड़ी चुनौती है। जीएसटी और नोटबंदी का असर भी उसे भयभीत कर रहा है तो कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं होने के कारण अंदर ही अंदर पनप रहा असंतोष भी भाजपा के लिए चुनौती बन सकता है।
कांग्रेस की परेशानी

हालांकि सियासी हालात कांग्रेस को ज्यादा परेशान नहीं कर रहे, लेकिन उसकी संगठनात्मक स्थिति जरूर एक बड़ी चुनौती है। पहले विधानसभा और फिर आम चुनाव में कांग्रेस की बुरी तरह हार ने कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ रखा है। हालांकि गुजरात में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के दौरों को मिल रहे समर्थन और कांग्रेस के सोशल मीडिया प्रकोष्ठ की बढ़ती आक्रामकता ने कुछ हौंसला बढ़ाया है, लेकिन कार्यकर्ताओं का मनोबल कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है। कांग्रेस के एक दिग्गज नेता ने कहा कि यदि एकजुट होकर चुनाव लड़े तो परिस्थितयां हमारे पक्ष में बनते देर नहीं लगेगी, लेकिन सवाल यही है कि क्या यह सम्भव हो पाएगा।
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