Friday, December 22, 2017

पाक से सटी सीमा पर भारतीय फौज की ‘सर्जिकल स्ट्राइक’




सुरेश व्यास

चारों ओर रेत का समंदर...सन्नाटा तोड़ते सांय-सांय करती हवा के झोंके और बहुत ही नजदीक नजर आ रही अन्तरराष्ट्रीय सीमा। हालांकि आदमजात का कोई नामोनिशान नजर नहीं आ रहा था, इस रेतीले इलाके में, लेकिन थोड़ी सी दूरी पर कुछ झाड़ियां हिली। आसमान से कुछ लोग उतरते नजर आए। पलक झपकी ही नहीं थी कि समूचा इलाका गोलियों की तड़तड़ाहट और धमाकों से गूंज उठा। चारों ओर धूल और धुएं के गुबार। लगभग दस मिनट के बाद फिर वही मरघट सी शांति और सांय सांय करती हवा के झोंकों के बीच विजयी मुस्कान बिखेरते सेना के जवान।
ये दृश्य नजर आया राजस्थान के बाड़मेर-जैसलमेर जिलों से सटी भारत-पाकिस्तान सीमा के निकट। मौका था थल सेना की पुणे स्थित दक्षिणी कमान के द्विवार्षिक युद्धाभ्यास का। इसे नाम दिया गया- ‘हमेशा विजय’ और इसमें पहली बार सेना के जवानों ने सर्जिकल स्ट्राइक का नजारा पेश कर साबित किया कि भारतीय सेना के जवान दुश्मन को भीतर घुसकर भी नैस्तनाबूद करने में किस तरह सक्षम हैं।



संयोग या कुछ और...
ये संयोग ही कहा जाएगा कि आज ही के दिन एक साल पहले भारतीय फौज ने जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पार कर पाकिस्तान की सीमा चौकियों को ध्वस्त किया था और पहली बार सर्जिकल स्ट्राइक का जमकर प्रचार किया गया। इस बहुचर्चित सर्जिकल स्ट्राइक की बरसी पर दक्षिणी कमान के कमाण्डो ने भारतीय थलसेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत की मौजूदगी में पश्चिमी मोर्चे पर सर्जिकल स्ट्राइक का ट्रेलर पेश कर कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर बैठे पाकिस्तानी सैन्याधिकारियों को यह संदेश देने की कोशिश की कि भारतीय फौज अब उन्हें 1971 की तरह टैंक ब्रिगेड के साथ रेगिस्तान के लोंगोवाला में घुसने का मौका ही नहीं देगी।
युद्धाभ्यास का सामरिक महत्व
दरअसल, भारतीय सेना थोड़े थोड़े अंतराल पर युद्धाभ्यास करती रहती है। इस बार जैसलमेर और बाड़मेर जिलों में स्थित सम्भवतः एशिया की सबसे बड़ी फील्ड फायरिंग रेंज में दक्षिणी कमान ने बड़ा युद्धाभ्यास किया है। इसमें कमान के लगभग तीन हजार से ज्यादा जवानों और अधिकारियों ने भाग लिया। युद्धाभ्यास हालांकि सेना के प्रशिक्षण का एक अहम हिस्सा है, लेकिन बदले हुए माहौल में आज सम्पन्न हुए युद्धाभ्यास का सामरिक महत्व कुछ अलग है।

कहां तक पहुंचा कोल्ड स्टार्ट
लगभग डेढ़ दशक पहले बदले गए सेना के युद्ध सिद्धान्त (वार डॉक्ट्रेन)- कोल्ड स्टार्ट की इस लगभग आखिरी कड़ी में सेना न सिर्फ कम समय में मोर्चे पर पहुंचने की रणनीति पर कामयाब हो रही है, बल्कि युद्धकाल में सेना के तीनों अंगों के साथ बेहतरीन सामंजस्य के प्रदर्शन से युद्ध को कम समय में ज्यादा मारक बनाने की कोशिशों को परवान चढ़ाने के प्रयास पर भी बहुत काम हो रहा है। युद्ध के मैदान में हथियारों के साथ तकनीक और खासकर बेहतरीन सर्विलांस उपकरणों के समुचित इस्तेमाल का पारंगतता हासिल करने की दिशा में भी ये युद्धाभ्यास खासे महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।


तैयारी नेटवर्क सेंट्रिक वार की
सेना ने ‘हमेशा विजय’ युद्धाभ्यास में भी वायुसेना के साथ बेहतर तालमेल का प्रदर्शन किया. वहीं नेटवर्क सेंट्रिक वारगेम ने इसे आधुनिकता के रंग में रंगने में कोई कसर नहीं छोड़ी। खुद थल सेनाध्यक्ष जनरल रावत ने भी कहा कि- ‘सेना और वायुसेना की यह सामंजस्य अद्भुत है।’ जनरल रावत ने लगातार दो दिन युद्धाभ्यास के दौरान मौजूद रहकर इसका बारीकी से न सिर्फ जायजा लिया, बल्कि खुद टैंक राइडिंग कर स्वदेश निर्मित बैटल टैंक अर्जुन-1 की क्षमताओं को भी परखा।


हर चुनौती के सामने को सक्षम

जनरल रावत ने कहा कि भारतीय फौज देश की सुरक्षा जरूरतों के हिसाब से हर जरूरी कदम उठा रही है। हम किसी भी आपात स्थिति का सामना करने में सक्षम हैं। दक्षिण कमान के आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल डीआर सोनी का कहना था कि इस युद्धाभ्यास से बहुत कुछ सुखद अनुभव हुए हैं। इन अनुभवों के आधार पर भारतीय सेना खुद को हर प्रतिकूल परिस्थिति में भी दुश्मन को सबक सिखाने में खुद को सक्षम और मजबूत पाती है।

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